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जीवन के राजा बनो : भिखारी नहीं
भारत के समस्त धर्मों का सार है-तप और जप । जिस जीवन में तप नहीं, जप नहीं, वह जीवन ही क्या ? तप से जीवन पवित्र होता है और जप से जीवन बलवान वनता है। तन से तप करो और मन से जप करो। तप और जप से जीवन पूर्ण होता है । वस्त्र मलिन होता है, तो उसे स्वच्छ और साफ करने के लिए दो चीजें जरूरी हैं-जल और साबुन । अकेला जल भी कपड़े को साफ नहीं कर पाता और अकेला साबुन भी व्यर्थ होता है। दोनों के संयोग से ही वस्त्र की संशुद्धि सम्भव रहती है। वस्त्र दोनों से शुद्ध होता है।
_आत्मा अनन्त काल से माया, वासना और कर्म के संयोग से मलिन हो गया है । अपवित्र और अशुद्ध हो गया है। उसे पवित्र और शुद्ध करना मनुष्य का परम कर्तव्य है । आत्मा की संशुद्धि का अमर आधार है-तप और जप । तप जल है, जप साबुन । तप और जप के संयोग से आत्मा पवित्र और निर्मल होता है। तप का अर्थ है, अपने आपको तपाना और जप का अर्थ है, अपने आपको पहचानना। पहले तपो, फिर अपने स्वरूप को प्राप्त करो। भगवान महावीर पहले तपे थे, बाद में उन्होंने अपने स्वरूप को पा लिया । भक्त से भगवान यों बना जाता है । मनुष्य महान् है, क्योंकि वह अपने तन का स्वामी है, मन का
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