________________
संसार बुरा नहीं : व्यक्ति की दृष्टि बुरी है
मानव जीवन विकास का एक मुख्य साधन है, जिसके द्वारा अपने कर्तव्य का योग्य रीति से पालन करने का सामर्थ्य अधिगत करके मनुष्य अपने साध्य की ओर तेजी से बढ़ सकता है। मानव जीवन ही सर्वोच्च क्यों है ? क्योंकि इस में आत्मा का सर्वांगीण विकास हो सकता है। मनुष्य से नीचे स्तर पर पशु का जीवन आता है, और उससे नीचे स्तर पर देवजीवन आता है । देव जीवन के सम्बन्ध में यह कथन आश्चर्य की वस्तु नहीं, क्योंकि जैन संस्कृति में जीवन की सफलता का मुख्य आधार धर्म साधना है। देव जीवन में यह साधना नहीं की जा सकती । धर्म की साधना कर्मभूमि में होती है, भोग भूमि में नहीं। देवत्व भोग भूमि है और मनुष्त्व है, कर्मभूमि । इसी कारण मानव जीवन की श्रेष्ठता सिद्ध है।
मैं कहता हूँ, मानव देह प्राप्त करना ही जीवन की इति नहीं है। समस्या का हल यहाँ नहीं हो पाता ? सबसे बड़ी बात है, मानव देह में मानवता प्राप्त करना । यदि मानवता नहीं है, तो फिर मानव देह भी निरर्थक हैं । यदि मानवता है, तो मानव देह का भी मूल्य है। जिस कार्य के लिए जो पात्र बनाया जाए और फिर भी वह पात्र उस कार्य की सिद्धि न कर सके, तो उस पात्र से लाभ क्या ? मानवता के बिना मानव जीवन की सिद्धि नहीं।
(
६८
)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org