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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन जैन पुराणों के प्रणयन काल में वैश्यों की सामाजिक स्थिति कैसी थी? इस प्रश्न पर विचारार्थ 'सार्थवाह' शब्द उल्लेखनीय है । 'सार्थवाह' का अर्थ है उस टोली का नेता जो वाणिज्य और व्यापार के संदर्भ में देश-विदेश में भ्रमण करता था । उपर्युक्त कथन की पुष्टि जैन पुराणों से होता है कि वैश्य धनोपार्जन के लिए देश से बाहर जाया करते थे। अन्य साक्ष्यों से भी स्पष्ट होता है कि तत्कालीन भारत ( विशेषतया गुजरात) के बनियों ने वाणिज्य और व्यापार के विकास में विशेष योगदान दिया था और वे इतने समृद्धवान् थे कि कुछेक तो सामन्त व्यवस्था में सम्मिलित हो गये थे ।२ उक्त पौराणिक संदर्भ वैश्यों की उत्थानपरक स्थिति की सूचना प्रदान करते हैं । किन्तु इनकी स्थिति का एक अन्य पक्ष भी था। जैन पुराणों में स्पष्टतया वर्णित है कि वैश्यों की निर्धारित आजीविका व्यापार के अतिरिक्त कृषि और पशुपालन भी था । पद्म पुराण में उल्लिखित है कि वाणिज्य, खेती, गोरक्षा आदि के व्यापार में रत लोग वैश्य होते हैं। यह वर्णन यथार्थता के निकट कहाँ तक है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है । क्योंकि जैसाकि इसके पूर्व वर्णन किया जा चुका है कि जैन पुराणों के रचना-काल में वैश्य प्रधानतया वाणिज्य से सम्बन्धित थे । ऐसा प्रतीत होता है कि इन पुराणों के वर्णन वैश्यों के अतीतकालीन कर्तव्यों की ओर संकेत करते हैं और इन वर्णनों को मात्र मौलिक आदर्शों का अवशेष माना जा सकता है। डॉ०. यादव का विचार है कि पूर्वमध्यकाल में वाणिज्य और व्यापार की उन्नति के कारण वैश्यों की पूर्वनिर्धारित आजीविका में परिवर्तन आ गया था। किन्तु तत्कालीन वैश्यों की स्थिति का स्वरूपांकन करने वाले आधुनिक जैन विद्वानों ने एक दूसरा ही तर्क प्रस्तुत किया है। इनकी समीक्षा के अनुसार वैश्यों ने कृषि और पशुपालन के कार्य को इसलिए छोड़ा था, क्योंकि इसमें हिंसा की सम्भावना अधिक रहती थी। १. पद्म ५५६६१, ८३।८०; हरिवंश २१७८-८०; महा ७०।१५० २. यादव-वही, पृ० ३८ ३. महा १६।१८४; पद्म ४।२०२, ३।२५६; हरिवंश ६।३६ ४. पद्म ३।२५७ ५. यादव--वही, पृ० ३८ ६. कैलाश चन्द्र जैन - प्राचीन भारतीय सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाएँ, भोपाल, १६७१, पृ० ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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