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________________ धार्मिक व्यवस्था एका वलीविधि, त्रिलोकसारविधि' वज्रमध्यविधि, २ मृदङ्गमध्यविधि, मुरजमध्य विधि, द्विकावलीविधि, मुक्तावली विधि, रत्नावलीविधि' रत्नमुक्तावली - विधि, कनकावलीविधि, " द्वितीय कनकावली विधि, " धर्मचक्रविधि, १९ द्विलक्षणपंक्तिविधि, २ परस्पर कल्याणविधि, " प्रोषधोपवास, " चातुर्मासोपवास, " षष्ठाष्ट ( बेला - तेला) उपवास, ' षष्ठोपवास" | १६ १७ आलोचित जैन पुराणों में विशिष्ट तिथियों एवं मासों में व्रतोपवास के विधान एवं फल का उल्लेख मिलता है । प्रतिपदा से पञ्चमी तक की तिथियों में उपवास रहने से सब सुखों की प्राप्ति होती है । प्रतिवर्ष भादों सुदी सप्तमी को उपवास रहने को परिनिर्वाण विधि वर्णित है । इससे भी अनन्त सुख की प्राप्ति बतायी गयी है । भादों सुदी एकादशी के दिन उपवास रहने से पल्यो प्रमाण काल तक सुख मिलता है । हर मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत करने से छियासी उपवास के बाद अनन्त सुख की प्राप्ति का उल्लेख है । मार्गशीर्ष सुदी तृतीया के दिन का उपवास अनन्त मोक्षफलदायक होता है । मार्गशीर्ष सुदी चतुर्थी के दिन वेला करने को विमान पंक्ति वैराज्य विधि संज्ञा से अभिहित किया है और इससे विमान पंक्ति का राज्य प्राप्त होता है ।" जैन कथाओं में रोहिणी, न्यायपञ्चमी, अष्टाह्निका, पुष्पाञ्जलि, सुगन्ध दशमी आदि व्रतों का वर्णन है । जैन मतावलम्बी वर्ष में तीन बार - आषाढ़, कार्तिक तथा फाल्गुन में पूजा करते हैं । पूजा के साथ वे व्रत भी रखते हैं । वे रोहिणी हरिषेण तथा पञ्चमी व्रत को विशेष महत्त्व देते हैं । २" मनुष्यों को समर्थ्यानुसार ही उपर्युक्त विधियों को करने का मोक्ष के सुख की उपलब्धि होती है । निर्देश है । इनके करने से स्वर्ग तथा १ हरिवंश ३४।५६ - ६१ २. वही ३४।६२-६३ ३. वही ३४।६४-६५ ४. वही ३४।६६ ५. वही ३४।६७ ६. वही ३४।६८ २०. २१. ६ ११ १६. ७. १७. वही ३४ । ६६ - ७०; महा ७१|४०८ ८. वही ३४।७१, वही ७ ४४, ७१।३६७१८. ६. वही ३४ । ७२-७३ १६. १०. Jain Education International १२ . १३. १४. १५. २ हरिवंश ३४।७६-७७ वही ३४ । १२३ वही पृ०४४३ की टिप्पणी वही ३४ । १२४ महा ७३|१६ पद्म २२१८४ वही ६४ । ७६ वही ५।७० हरिवंश ३४।१२६-१३० 8 वही ३४।७४-७५; महा ७।३६ श्रीचन्द्र जैन — जैन कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन, जयपुर, १६६१, पृ० ५७ वृजेन्द्र नाथ शर्मा - सोशल एण्ड कल्चरल हिल्ट्री ऑफ नार्दर्न इण्डिया, नई दिल्ली, १६७२, पृ० १०८ १०६ For Private & Personal Use Only ३६७ www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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