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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन बलि दी जाती थी। यज्ञशाला में बकरे बाँधे रहते थे जिनकी बलि दी जाती थी। पद्म पुराण में वर्णित है कि यज्ञ में हिंसा होती थी, गोसव यज्ञ में अगम्या (परस्त्री) का सेवन किया जाता था, पितृमेध यज्ञ में पिता का वध मेधी पर करते थे । सौत्रामणियज्ञ में मदिरा पीना दोषपूर्ण नहीं था। जैनियों ने हिंसा के कारण ही यज्ञों का विरोध किया है । जैन पुराणों में पशुबलि का विरोध किया गया है । पद्म पुराण में यज्ञ-दीक्षा को महापाप कथित है।' महा पुराण में यज्ञ-कर्ता को दण्ड देने की व्यवस्था थी। यज्ञों का विरोध अन्य तत्कालीन जैन ग्रन्थों में भी उपलब्ध होता है। यशस्तिलक में यज्ञों में पशुबलि का विरोध मिलता है। डॉ० हण्डीकी का कथन है कि लगभग सातवीं-आठवीं शती में जब ब्राह्मण विचारकों का प्रादुर्भाव बहुसंख्या में हुआ था, तब जैन विरोध की आवाज भन्द पड़ गयी थी। परन्तु यह कथन श्रद्धेय नहीं है । क्योंकि आलोचित पुराणों में-जिसका रचना-काल उक्त ही है-जैनाचार्यों द्वारा विरोध किया जा रहा था। यही नहीं बाद के जैन ग्रन्थों में भी विरोधी ध्वनि उपलब्ध होती है।
जैनेतर वैदिक ग्रन्थों में भी हिंसापरक यज्ञों का विरोध मिलता है। ऋग्वेद (१०।४६।६) और मुण्डकोपनिषद् (१।२।७) में ऐसे यज्ञों का विरोध हुआ है। इससे स्पष्ट है कि यज्ञों में हिंसा का प्रचलन बाद में हुआ।
(iv) वेद और वेदों का विरोध : जैनी अपने ग्रन्थों को ही वेद कहते हैं। महा पुराण में उल्लिखित है कि जिसके बारह अंग हैं, जो निर्दोष हैं और जिसमें श्रेष्ठ आचरणों का विधान हैं, वही वेद हैं। उन्हीं पुराणों और धर्मशास्त्रों को वास्त
१. पद्म ६७।३८८ २. वही ६८।२२७ ३. वही ११८४-८६ ४. महा ६७।३२७-४७३; हरिवंश १७।१३५; पद्म ११।४१-४३ ५. पद्म १११६ ६. महा ३६।१३६
कृष्ण कान्त हण्डीकी-यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कल्चर, सोलापुर, १६४६,
पृ० ३८०-३८८ ८. कृष्ण कान्त हण्डीकी--वही, पृ० ३६० ६. आचार्य तुलसी-यज्ञ और अहिंसक परम्पराएँ, गुरुदेव श्री रत्नमुनि
स्मृति ग्रन्थ, पृ० १५१ .
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