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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन (३) कल्पद्रुम : चक्रवर्तियों द्वारा जिस यज्ञ में वाञ्छित दान की पूर्ति की जाती है, उसे कल्पद्रुम संज्ञा प्रदत्त है ।" ३८८ ( ४ ) अष्टाह्निक : यह जगत में प्रसिद्ध है और इसे सभी मनुष्य प्रतिदिन दैनिक विधि के साथ करते हैं । २ उपर्युक्त चारों प्रकारों के अतिरिक्त महा पुराण में पूजा का पाँचवाँ प्रकार कथित है, जिसे केवल इन्द्र ही कर सकते हैं । इसी को ऐन्द्रध्वज महायज्ञ की अभिधा प्रदान की गयी है ।" महा पुराण में उन सभी पूजा की विधियों को इसी में समाहित किया है, जो अन्य लोग मानते हैं । उदाहरणार्थ, बलि अर्थात् नैवेद्य चढ़ाना, अभिषेक करना तथा तीनों संध्याओं में उपासना करना आदि को चारों भेदों के अन्तर्गत ही माना है । व्यवहार में पूजा के पाँच अंग बताये गये हैं—आह्वानन, स्थापना, संनिधिकरण, पूजन तथा विसर्जन ।" हरिवंश पुराण में तीन प्रदक्षिणा करके दूध, चन्दन, इक्षुरस, घी, दही, जल, चावल, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य से पूजा करने का विधान मिलता है । इसी प्रकार पूजा करने का उल्लेख महा पुराण में उपलब्ध है ।" यहाँ यह गवेषणा का विषय बनाया जा सकता है कि पूजा प्रकार के अन्तर्गत जिन यज्ञों का उल्लेख हुआ है, क्या वे वैदिक यज्ञों के समान थे ? क्या इन यज्ञों में पशु बलि दी जाती थी ? क्या जैनियों को यज्ञ करने का विधान था ? यह विचारणीय प्रश्न है कि जिस अर्थ में यज्ञ का प्रयोग वैदिक यज्ञों के लिए किया गया है वह अर्थ जैनियों को मान्य नहीं था । यही कारण है कि उन्होंने यज्ञ शब्द का अर्थ अत्यधिक दान तथा पूजा के लिए किया है ।' हरिवंश पुराण में यज्ञ का अर्थ देवपूजा बताया गया है । इसका वर्णन आगे किया गया है । पद्म पुराण में जिनेन्द्र की पूजा-विधि का कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है । भगवान् के मन्दिर को विविध प्रकार से सुसज्जित कर, नृत्य-गीत वादिनों द्वारा पं. २. ३. महानैन्द्रध्वजोऽन्यस्तु सुरराजैः कृतोमहः । महा ३८। ३२ ४. महा ३८।३३ महा ३८।३१ वही ३८ ३२ रत्नकरण्ड श्रावकाचार ११६ । १७३।१५ हरिवंश २२।२१-२३ ५. ६. ७. ८. ६. हरिवंश १७।१२६ महा ३१।५३, ३३।१२५ यज्ञशब्दाभिधेयोरुदानपूजास्वरूपकात् । महा ६७।१६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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