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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन का सांस्कृतिक अध्ययन' है, इसलिए प्रस्तुत अध्ययन को 'पुराण' नामधारी ग्रन्थों तक ही सीमित रखा गया है। जैसा कि पारम्परिक पुराणों एवं उपपुराणों की संख्या निश्चित है, वैसी संख्या जैन पुराणों की नहीं है। जैन 'पुराण' और 'चरित' ग्रन्थ बहु संख्या में प्राप्य हैं। इनकी स्पष्ट संख्या का उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता । ८ आधार ग्रन्थों तथा विषयवस्तु के आधार पर जैन पुराणों को निम्नांकित चार भागों में विभाजित किया गया है : । " ( अ ) रामायण विषयक पुराण, ( ब ) महाभारत विषयक पुराण, ( स ) त्रिषष्टिशलाकापुरुष विषयक पुराण, (द) तिरसठ शलाकापुरुषों के स्वतंत्र पुराण । [अ] रामायण विषयक पुराण : जैन पुराण विमलसूरि का प्राकृत में निबद्ध ने इसकी तिथि तृतीय शती ई० मानी है, इसकी तिथि वि० सं० ५३० निर्धारित दिगम्बर तथा यापनीय - सभी सम्प्रदायों का समावेश के जीवन का वर्णन है, जो कि वाल्मीकि रामायण से साम्य रखता है । विण्टरनित्ज का विचार है कि प्रणेता वाल्मीकि का अनुसरण नहीं करता, अपितु राम की कथा के माध्यम से विश्व इतिहास में जैन परम्परा को प्रतिपादित करना चाहता है | २ स्वयंभू ने अपभ्रंश में विमलसूरि ने रामायण की जिस परम्परा को प्रतिपादित किया, उसी को परवर्ती अनेक जैनाचार्यों ने अपनाया । 'पउम चरियं' के आधार पर ६७७ ई० में जैनाचार्य रविषेण ने सर्वप्रथम संस्कृत में 'पद्म पुराण' लिखा। 'पउम चरिउ' की रचना की। राम विषयक यह कथा गुणभद्र कृत संस्कृत ‘उत्तर पुराण', पुष्पदन्त कृत अपभ्रंश 'महा पुराण' और हेमचन्द्र कृत संस्कृत 'विषष्टिशलाकापुरुषचरित' में उपलब्ध है । १. गुलाबचन्द्र चौधरी - वही, पृ० ३५-२३० २. विण्टरनित्ज - वही, पृ० ४८६ रामायण विषयक सबसे प्राचीन 'पउम चरियं' है । याकोबी परन्तु अधिकांश विद्वानों ने किया है । इसमें - श्वेताम्बर, उपलभ्य है । इसमें पद्म (राम) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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