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________________ धार्मिक व्यवस्था ३७६ (२) ध्यान : हरिवंश पुराण में उत्तमसंहनन के धारक पुरुष की चिन्ता अर्थात् चंचल मन का किसी एक पदार्थ में अन्तर्मुहूर्त के लिए रुक जाने को ध्यान कथित है ।" महा पुराण में विवृत है कि तन्मय होकर किसी एक ही वस्तु में जो चित्त का निरोध कर लिया जाता है, उसे ध्यान संज्ञा प्रदत्त है । २ आगे कहा गया है कि जो चित्त का परिणाम स्थिर होता है उसे ध्यान कहते हैं और जो चंचल रहता है उसे अनुप्रेक्षा, चिन्ता, भावना अथवा चित्त संज्ञाओं से सम्बोधित किया है ।" (३) ध्येय : जो अशुभ तथा शुभ परिणामों का कारण हो उसे ध्येय कहते हैं ।" महा पुराण में ध्येय तीन प्रकार का कथित है -- शब्द, अर्थ तथा ज्ञान ।" महा पुराण में अन्यत्र विवृत है कि मैं (जीव ) तथा मेरे अजीव, आस्रव, वन्य, संवर, निर्जरा तथा कर्मों का क्षय होने पर मोक्ष - इस प्रकार उक्त सात तत्त्व या पुण्य-पाप सम्मिलित करने से नौ पदार्थ ध्यान योग्य हैं । जगत के समस्त तत्त्व जो जिस रूप में अवस्थित हैं और जिनमें मैं और मेरेपन का संकल्प न होने से जो उदासीन रूप से विद्यमान हैं वे सब ध्यान के आलम्बन (ध्येय ) हैं ।" महा पुराण में अर्हन्तदेव की विशेषताओं का वर्णन करते हुए उन्हें ध्यान के योग्य कथित है ।" [ii] ध्यान का स्वरूप : जिसकी वृत्ति अपने बल के अन्तर्गत रहती है, उसी को महा पुराण में ध्यान का स्वरूप कहा गया है । " १. २. ३. ध्यानमेकाग्रचिन्ताया घनसंहननस्य हि । निरोधोऽन्तर्मुहुर्तं स्याच्चिन्ता स्यादस्थिरं मनः ।। ऐकाग्रयेण निरोधो यश्चित्तस्यैकत्र वस्तुनि । स्थिरमध्यवसानं यत्तद्वयानं यच्चलाचलम् । सानुप्रेक्षाथवा चिन्ता भावना चित्तमेव या ॥ महा २१६; तुलनीय - तत्त्वार्थसूत्र ६।२७ ७. ४. ५. श्रुतमर्थाभिधानं च प्रत्ययश्चेत्यदस्त्रिधा ६. अहं ममास्रवो बन्धः संवरो निर्जराक्षयः । कर्मणामिति तत्त्वार्था ध्येयाः सप्त नवाथवा ॥ ध्यानस्यालम्बनं कृत्स्नं जगत्तत्वं यथास्थितम् । विनात्मात्मीयसंकल्पादोदसीन्ये निवेशितम् ॥ ध्येयमप्रशस्तप्रशस्तपरिणामकारणं । चारित्रसार १६७ २ ८. महा २१।११२-१३० ६. धीबलायत्तवृत्तित्वाद् ध्यानं तज्ञैर्निरुच्यते । महा २१८ Jain Education International हरिवंश ५६।३ महा २१।१११ महा २०1१०८ महा २१।१७ महा २१।११ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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