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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन [ख] धार्मिक पक्ष १. मुनि का आचार या श्रमणाचार : जैन धर्म मूलत: निवृत्तिमूलक है । जैन धर्म में मुनियों एवं श्रमणों का विशेष स्थान है । आलोचित जैन पुराणों में इनसे सम्बन्धित अग्रलिखित विवरण उपलब्ध होते हैं : ३६४ [i] मुनियों का महत्त्व : महा पुराण में विवृत है कि साधुओं का समागम हृदय के संताप को विनष्ट कर परमानन्द की संवृद्धि कर मन की वृत्ति को संतुष्ट करता है, पाप का विनाश करता है, योग्यता की पुष्टि करता है, कल्याण की वृद्धि करता है, मोक्ष मार्ग को बताता है, जो सब प्रकार के परिग्रह से रहित है, महातपश्चरण में लीन है और तत्त्वों के ध्यान में सदा लीन रहते हैं, ऐसे श्रमण (मुनि) उत्तम पात्र कहलाते हैं। राजा के यहाँ मुनियों के उपस्थित होने पर वह स्वयं उनका षडगाह एवं प्रासुक आहार प्रदान कर आदर-सत्कार करता था और रानियाँ भी स्वयं मुनि की सेवा में तत्पर रहती थीं। मुनि धर्म तो साक्षात् मोक्ष का कारण है । * पांच महाव्रत, पाँच समितियाँ एवं तीन गुप्तियाँ मुनियों के धर्म हैं । जो मनुष्य मुनिधर्म से संयुक्त होकर शुभ ध्यान में तत्पर रहते हैं, वे इस दुर्गन्धपूर्ण बीभत्स शरीर को त्याग कर स्वर्ग या मोक्ष को प्राप्त करते हैं ।" मुनि परोपकार की भावना से लोगों के पास जा जा कर उन्हें मोक्ष मार्ग का उपदेश देते थे, यह उनका स्वभाव था। मुनि यमी, वीतराग, निर्मुक्तशरीर, निरम्बर, योगी, ध्यानी, ज्ञानी, निःस्पृह और बुध हैं । अतः ये वन्दनीय होते हैं ।" मुनियों के लिए मित्र, शत्रु, भाई, बान्धव आदि सब समान और सबके ऊपर समान दया वाले होते हैं । " १. महा ६।१६०-१६३ २. सर्व ग्रन्थविनिर्मुक्ता महातपसि ये रता: । श्रमणस्ते परं पातं तत्त्वध्यानपरायणः ॥ पद्म १४।५८ ३. महा ६२।३४८- ३५०; पद्म १०६ ८६-८७; हरिवंश ५०।५६ ४. मौनस्तु साक्षान्मोक्षाय कल्पये । हरिवंश १८ । ५१; पद्म ६।२६५ ५. पद्म ४।४८-४६ ६. ७. 5 महा ६।१६३ यमिनो वीतरागश्च निर्मुक्ताङ्गा निरम्बराः । योगिनो ध्यानिनो वन्द्या ज्ञानिनो निःस्पृहा बुधाः ॥ पद्म १०६।८८ वयं सर्वस्य सदयाः सममितारिबान्धवाः । पद्म १०६ । ११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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