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________________ धार्मिक व्यवस्था ३३७ हरिवर्ष, विदेह, रम्यक, हैरण्यक, ऐरावत । यहाँ पर बहुत से पर्वत और नदियाँ हैं।' महा पुराण के वर्णनानुसार संसार क्षण-क्षण में परिवर्तित होते हैं । इसलिए यह संसार विनश्वर कथित है ।२ (iii) ऊर्ध्वलोक : इस लोक में देवता का निवास होता है। जैन पुराणों के उल्लेखानुसार मेरु पर्वत की चूलिका के साथ ही ऊर्ध्वलोक प्रारम्भ हो जाता है । चूलिका के ऊपर-ऊपर स्वर्ग तथा ग्रैवेयक आदि हैं, जिनका विवरण क्रमशः निम्नवत् हैसौधर्म, ऐशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत ।' चौबीस तीर्थंकरों के लिए चौबीस स्वर्गों का उल्लेख पद्म पुराण में मिलता है । हरिवंश पुराण में ऊर्ध्वलोक का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है ।। __ महा पुराण के अनुसार जैनी आस्तिक होते हैं । परलोक के बिगड़ने के भय से वे धार्मिक क्रियाएँ सम्पादित करते हैं । ऐसी मान्यता है कि उत्तम कर्म करने से स्वर्ग (ऊर्ध्वलोक) की उपलब्धि होती है । २. षड्द्रव्य : जैन दर्शन में षड्द्रव्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके विषय में अग्रलिखित पंक्तियों में विवेचना की गयी है : (i) द्रव्य का स्वरूप : द्रव्य का लक्षण सत् है। गुण और पर्याय के समूहों को भी द्रव्य कथित है। उदाहरणार्थ, जीव एक द्रव्य है, उसमें सुख, ज्ञान आदि गुण हैं और नर, नारकी आदि पर्याय हैं । इसमें द्रव्य की गुण एवं पर्याय से पृथक् सत्ता नहीं है। अनादि काल से गुणपर्यायात्मक ही द्रव्य है। सामान्यतः गुण नित्य होते हैं और पर्याय अनित्य । जैन दृष्टि से सत् में उत्पत्ति, विनाश और स्थिरता उपलब्ध हैं । अतएव प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है और उसमें स्थिरता भी रहती है । हरिवंश पुराण में द्रव्य के स्वरूप का उल्लेख करते हुए इसका निरूपण-सत, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव एवं अल्प-बहुत्व-इन आठ अनुयोग द्वारों १. महा ४।४८-५६, ६२।१६-१७, ६२।१६१-१६२; हरिवंश १०।२६-३३, ५५६-१७६ २. वही ५६।३७ ३. हरिवंश ६।३५-३८; पद्म १०५।१६७-१६६ ४. पद्म २०१३१-३५ ५. हरिवंश ६।४३-५४, ६।११६-१२१ ६, महा ५४।२६२ २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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