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________________ अभिलेखों से भी होती है ।" उक्त अनुच्छेदों में चर्चित कृषि एवं पशुपालन के संदर्भ में यह तथ्य विचारविमर्श का विषय बन जाता है कि हमारे आलोचित पुराणों के प्रणयन काल में कृषिवृत्ति से किस विशेष जाति अथवा वर्ग का सम्बन्ध था ? प्रस्तुत विषय पर आधुनिक विद्वानों का मत है कि इस काल में कृषि कार्य, यथार्थतः कर्षण कार्य, में शूद्रों को ही नियुक्त किया जाता था । क्योंकि ह्वेनसांग ने अपने विवरण में स्पष्टतया उल्लेख किया है कि कृषि कार्य के यथार्थ कर्ता शूद्र थे । उक्त अनुच्छेद में जैन पुराणों के उस स्थल का भी संदर्भ प्रस्तुत है, जहाँ हलवाहक को 'कीनाश' संज्ञा से सम्बोधित किया है । कीनाश एक पुरातन शब्द है । ऋग्वेद' में यह शब्द हलवाहक और कर्षक के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, किन्तु विष्णुधर्मोत्तर' तथा भविष्य पुराणों में कीनाश शब्द का प्रयोग हलवाहक या कर्षक के अभिप्राय में न होकर वैश्य जाति के अर्थबोधक के रूप में किया गया है । परन्तु आठवीं शती के नारदस्मृति के भाष्यकार ने कीनाश शब्द का प्रयोग शूद्रार्थ किया है। ऐसी स्थिति में विद्वानों का यह अनुमान कि पूर्व मध्यकाल में वाणिज्य के ह्रास के कारण वैश्यों के एक वर्ग ने शूद्रों की वृत्ति ग्रहण कर लिया था - तर्कसंगत अवश्य प्रतीत होता है । किन्तु इससे यह तर्क समर्थित नहीं हो पाता कि हमारे आलोच्य पुराणों के रचनाकाल में वाणिज्य व्यापार का सर्वथा और सर्वशः ह्रास हो गया था । इसका स्पष्टीकरण अग्रलिखित विवरण से होगा । २. ४ शिल्प- कर्म : जैन पुराणों के अनुशीलन से तत्कालीन शिल्पों का ज्ञान उपलब्ध होता है । महा पुराण में हस्त कौशल को शिल्प-कर्म की अभिधा प्रदत्त है ।" १. आर्थिक व्यवस्था : ४. वैदिक इण्डेक्स, भाग १, पृ० १५६ ५. विष्णुधर्मोत्तर ३।१०।३ भविष्य पुराण, ब्रह्मपर्व ४४।२२ नारदस्मृति १।१८१ ७. ८. शिवनन्दन मिश्र - गुप्तकालीन अभिलेखों से ज्ञात तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक दशा, लखनऊ, १६७३, पृ० ८४-८५ आर० एस० शर्मा -- शूद्राज़ इन ऐंशेण्ट इण्डिया, पृ० २३४ तथा ब्रजनाथ सिंह यादव - सोसाइटी एण्ड कल्चर इन नार्दर्न इण्डिया, इलाहाबाद १६७३, पृ० ४१ टी० वाटर्स - ऑन् युआन च्वांगस ट्रब्लस इन इण्डिया, लन्दन, १६०४ – १६०५, वा० १, पृ० १६८ ३२५ शिल्पं स्यात् करकौशलम् । महा १६।१८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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