________________
साक्ष्य-अनुशीलन
[क] पुराण-व्याख्या : पारम्परिक एवं जैन दृष्टिकोण
'पुराण' का अर्थ प्राचीन काल की घटनाओं का सूचक ग्रन्थ है। 'पुराण' शब्द का आविर्भाव तो बहुत पहले हो चुका था, परन्तु पौराणिक ग्रन्थ बाद में रचे गये । 'पुराण' शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम वैदिक-ग्रन्थों में उपलब्ध है। ऋग्वेद में कई स्थलों पर 'पुराण'' शब्द का प्रयोग हुआ है, किन्तु एक स्थल पर 'पुराणी'२ शब्द प्राप्य है । यहाँ यह शब्द प्राचीनता तथा प्राचीन गाथा के लिए प्रयुक्त हुआ है । अथर्ववेद के दो मंत्रों में 'पुराण' ३ तथा 'पुराणवित्'४ शब्द मिलते हैं । गोपथ-ब्राह्मण में ब्राह्मण, उपनिषद्, कल्प आदि के साथ-साथ पुराण भी वेदांग के रूप में मान्य है। इसमें अन्यत्र
१. ऋग्वेद ३।५।४६, ३।५८।६, १०।१३०१६ २. वही ६६६४ ३. अथर्ववेद ११७।२७ ४. वही। ५. गोपथ ब्राह्मण १।२।१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org