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ललित कला
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हुआ है। झांझ तथा झालर की झनक तथा झनकार एवं आकार-प्रकार में सामान्य भेद है । झांझ, झालर तथा मंजीरा के विभिन्न रूप मिलते हैं ।
(iv) झांझ-मंजीरा : हरिवंश पुराण में झांझ-मंजीरा शब्द का उल्लेख हुआ है । यह दोनों ही हाथ से बजाया जाता है । '
(५) अन्य वाद्य : आलोचित जैन पुराणों में कुछ इस प्रकार के वाद्य प्रयुक्त हैं, जिनका मात्र उल्लेख ही है । इनका विस्तृत विवरण एवं उक्त चारों प्रकार के वाद्यों से साम्यता न होने के कारण इनकी केवल तालिका प्रस्तुत की जा रही है । इन वाद्यों का नाम निम्नवत् है :
अम्लातकर, गुञ्जा', झर्झर', दुंदुकाणक', भंभा', मण्डुक, रटित, लम्प', लम्पाक", विपञ्ची" (वैपञ्च), वेत्रासन '२, सुन्द", हक्का", हुंकार", हेतुगुञ्जा", हैका " आदि ।
[iii] नृत्य कला : प्राचीनकाल से ही समाज में नृत्य कला की प्रधानता किसी न किसी रूप में उपलब्ध है । यही कारण है कि समाज के सभी वर्गों में नृत्य कला के प्रेमी एवं अभिरुचि रखने वाले व्यक्ति होते हैं ।" दशरूपक के वर्णनानुसार भावों पर आधारित अंग संचालन की प्रक्रिया ही नृत्य है ।" इसका अन्य रूप 'नृत्त ' है, जिसमें ताल तथा लय के अनुरूप गात्र विक्षेपण होता है । २० मन्मथ राय ने 'नृत्य' तथा 'नृत्त' के प्रभेद को स्पष्ट करते हुए उल्लेख किया है कि - प्राचीन आचार्यों ने ताल-लय के साथ मेल रखते हुए अंग संचालन प्रक्रिया को नृत्य संज्ञा से अभिहित किया है । इसी प्रकार रखते हुए अंगभंगिमा द्वारा अपने मनोगत भावों का प्रदर्शन उन्हीं भावों को
( गात्र विक्षेप) की ताल-लय से सामञ्जस्य कर दर्शकों के मन में
१. हरिवंश २२।१२
२.
पद्म ५८।२७, ८२।३१ ३. वही ८२।३१
४. वही ५८।२८
५. वही ५८।२७
६.
वही ५८।२७
७. वही ५८।२७
८.
वही ८२।३१
६. वही ८२।३०
१०.
वही ५८।२७
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११.
१२ .
१३.
१४. वही ५८।२७
१५. वही ५८।२७
१६. वही ५८।२८
१७.
वही ८।३१, ८५५
१८. वही २४६, १०३।६६
१६.
दशरूपक १।६
२०. वही १।१०
हरिवंश २२।१३
वही ४।६
पद्म ८०।५५
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