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________________ ललित कला २६१ (२) मध्यम ग्राम : हरिवंश पुराण में मध्यम ग्राम विषयक सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। मध्यम ग्राम में पंचम तथा ऋषभ स्वर का संवाद प्रयोग होता है। मध्यम ग्राम में बाईस श्रुतियों और सात मूर्छाओं का प्रयोग हुआ है। षड्ज ग्राम में पूर्वोक्त उल्लिखित बाईस श्रुतियां इसमें भी उपलब्ध हैं, किन्तु इसकी सप्त मूर्छनाएँ पूर्वकथित ग्राम से भिन्न प्राप्य हैं। मध्यम ग्राम की सात मूर्च्छनाएँसौबीरी, हरिणाश्चा, कलोपनता, शुद्ध मध्यमा, मार्गवी, पौरवी तथा रिष्यका-हैं। उक्त पुराण में मध्यम ग्राम की दस जातियाँ-गान्धारी, मध्यमा, गान्धारोदीच्या, रक्तगान्धारी, रक्तपंचमी, मध्यमोदीच्या, नन्दयन्ती, कर्मारवी, आन्ध्री तथा कौशिकी-का उल्लेख हुआ है ।' पद्म पुराण में भी मध्यम ग्राम की दस जातियों में गान्धारीदीच्या, मध्यमपंचमी, गान्धारपंचमी, रक्तगान्धारी, मध्यमा, आन्ध्री, मध्यमोदीच्या, कर्मारवी, नन्दिनी, तथा कैशिकी सम्मिलित है। २. संगीत कला के भेद भेदान्तर : जैन पुराणों में उल्लिखित संगीत कला को अध्ययन की दृष्टि से निम्निष्ट भेद-भेदान्तरों में विभक्त किया गया है : [i] गीत या गायन संगीत : पूर्व ही हम वर्णन कर चुके हैं कि संगीत के तीन तत्त्व-गीत (गायन), वाद्य एवं नृत्य-हैं । इन तीन अंगों में गीत का प्रथम स्थान है। मनुष्य स्वतः कुछ न कुछ अपने मन में गाता है। आलोच्य जैन पुराणों में गीत या गायन से सम्बन्धित सामग्री उपलब्ध है। जैन सूत्रों में चार प्रकार के गेय-उत्क्षिप्त, पादात्त, मंदक तथा रोचितावसानवर्णित हैं। गीत में इन तत्त्वों का होना अनिवार्य माना गया है । उरस्, कण्ठ एवं शिरस् से पदबद्ध, गाने योग्य पदों के साथ समरूप ताल पद का उच्चारण करना और सप्त स्वरों के समाक्षरों सहित गाना ही गीत या गायन का बोधक है । गायन के नियमानुसार प्रथम मन्द्र स्वर से प्रारम्भ करके क्रमश: मध्य एवं तार स्वर में गीत का उच्चारण करना चाहिए। विधिवत् गीत गाने को 'ललित-गीत' की श्रेणी में रखते हैं। महा पुराण में वर्णित है कि वार-वनिताओं द्वारा गाये गये गीत -विशेष आनन्ददायक होते हैं । १. हरिवंश १६१५५ २. वही १६१६३-१६४, १६१६७-१६८ ३. वही १६।१७५-१७७ ४. पद्म २४।१३-१४ ५. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति टीका ५, पृ० ४१३ ६. महा १६।१६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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