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कला और स्थापत्य
२६१ (५) बुर्ज : आलोचित महा पुराण में वर्णित है कि गोपुर और अट्टालिका के मध्य में तीन-तीन धनुष विस्तार वाले बुर्ज (इन्द्रकोश) निर्मित हुए थे। बुर्ज किवाड़-सहित झरोखों से युक्त होते थे। बुों के मध्य अत्यन्त स्वच्छ देवपथ से बने हुए थे, जो तीन हाथ चौड़े और बारह हाथ लम्बे होते थे।'
(६) गोपूर : आलोच्य जैन पुराणों में अनेक गोपुरों के निर्माण का वर्णन उपलब्ध है। पद्म पुराण के अनुसार उस समय कपड़ों के डेरों में भी गोपुरें निर्मित की जाती थों और उनके दरवाजे पर योद्धा नियुक्त किये जाते थे ।' जैन पुराणों में कोट के चारों दिशा में एक-एक गोपुर होते थे । अट्टालिकाओं के मध्य में एक-एक गोपुर का निर्माण हुआ था, उस पर रत्नों के तोरण लगे हुए थे। ये गोपुर ५० धनुष ऊँचे और २५ धनुष चौड़े होते थे। महा पुराण के अनुसार प्रत्येक गोपुर द्वार पर-पंखा, छत्र, चामर, ध्वजा, दर्पण, सुप्रतिष्ठक (ठौना), भृङ्गार एवं कलश—ये आठ मंगल द्रव्य रखे जाते थे। गोपुर के दरवाजे पर पहरेदार पहरा देते थे।
(७) प्रतोली : अर्थशास्त्र से यह ज्ञात होता है कि प्राकार में चार प्रधान द्वारों के अतिरिक्त गौण द्वार भी होते थे, इन्हें प्रतोली संज्ञा से अभिहित किया गया है। प्रधान नगर-द्वार (गोपुर) की चौड़ाई प्रतोली की छः गुनी होनी चाहिए । नगर द्वार के ऊपर एक बुर्ज निर्मित किया जाता था, जो आकार में घड़ियाल के मुख के सदृश्य होता था। महा पुराण में प्रतोली को रथ्या से चौड़ी गली के रूप में चित्रण प्राप्य है।
२. भवन-निर्माण : 'भू' धातु से अधिकरण अर्थ में 'अन्' प्रत्यय होने से भवन शब्द बनता है, जिसमें प्राणी निवास करते हैं, अतः उसे भवन संज्ञा से सम्बोधित करते हैं । आदिम काल से मनुष्य की तीन प्राथमिक आवश्यकताएँ-भोजन, वस्त्र एवं आवास-रही हैं । मनुष्य किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करता था ? इसका
१. महा १६६५-६६ २. पद्म ३।३१६, ५।१७५; महा ६२।२८; हरिवंश २०६५ ३. वही ६३।२८-३४ ४. हरिवंश २१६५; महा ६२।२८ ५. महा १६६४ ६. वही २२।२७५-२७६ ७. अर्थशास्त्र (शास्त्री), पृ० ५३ ८. महा ४३।२०८
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