SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन ६. संग्रह : संग्रह शब्द 'सम्' पूर्वक 'ग्रह ' धातु से 'अ' प्रत्यय होने से बना है । इसका शाब्दिक अर्थ संचय करना है । महा पुराण में वर्णित है कि दस गाँवों के मध्य में एक ऐसे महान् (बड़े) गाँव को, जहाँ पर वस्तुओं का संग्रह किया जाता हो और आवश्यकतानुसार वितरण होता हो, उसे संग्रह कहते हैं। ये संग्रह-ग्राम तत्कालीन नगर और ग्राम के सम्पर्क-सूत्र के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। आधुनिक परगना को संग्रह-ग्राम माना जा सकता है। १०. संवाह : संवाह शब्द की व्युत्पत्ति-'सम्' पूर्वक 'वह' धातु से 'अ' प्रत्यय होकर वकोत्तर अकार को आकार आदेश होने से 'संवाह' शब्द बना । इसका शाब्दिक अर्थ, जहां पर आम रूप से वाहन प्राप्त होते हों उसे संवाह कहा गया है। जैन पुराणों के अनुसार जिसमें मस्तक तक ऊँचे-ऊँचे धान्य के ढेर लगे हों, उस गाँव को संवाह कहते हैं । इससे ज्ञात होता है कि गांवों में सर्वाधिक अन्न की उपज होती थी, जिससे लोग समृद्धि एवं सम्पन्नता का जीवन व्यतीत कर रहे थे । वस्तुतः संवाह नगर के समान समृद्ध होते थे। ११. घोष : 'घुष्' धातु से 'अ' प्रत्यय होकर 'उकार' को ओकार आदेश होने पर 'घोष' शब्द बना । जहाँ पर कोलाहल करने वाले प्राणी रहते हों, उसे घोष कहते हैं । जैन पुराणों के अनुसार उस समय अहीरों (ग्वालों) की बस्ती पृथक् हुआ करती थी। अहीरों के इस छोटे से गांव को घोष कथित है।' आज भी पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में अहीर के लिए घोसी शब्द का प्रयोग किया जाता है। १२. आकर : महा पुराण के अनुसार जिस गांव के पास में ताम्र, रजत स्वर्ण, मणि, रत्न आदि की खानें होती हैं, उसे आकर की संज्ञा प्रदान की गयी है। १. दशग्राम्यास्तु मध्ये यो महान् ग्रामः स संग्रहः । महा १६।१७६ २. संवाहस्तु शिरोव्यूढधान्यसंचय इप्यते । महा १६।१७३; पद्म ४७६ ३. पद्म ४११५७; हरिवंश २।३; महा १६।१७६ ४. महा १६।१७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy