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________________ २२४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन महा पुराण में वर्णित है कि देवता एवं विद्याधर भी युद्ध में भाग लेते थे ।' यहाँ पर यह सुझाव रखा जा सकता है कि देव और विद्याधर समीपस्थ राजा रहे होंगे, जो युद्ध काल में अपने मित्र राजा की सहायता करते थे। महा पुराण के वर्णनानुसार सेना में गान्धर्व भी होते थे । ये सैनिकों का मनोरंजन एवं गाना आदि सुनाया करते थे, जिससे उनकी स्फूर्ति एवं उत्साह का वर्द्धन होता था । महा पुराण में वर्णित है कि सेना के साथ युद्ध-स्थल में स्त्रियाँ, वारांगनायें तथा बच्चे भी जाया करते थे।' इससे यह प्रतीत होता है कि सेना के साथ स्त्रियों एवं बच्चों के जाने से सैनिकों को घर की याद एवं चिन्ता नहीं रहती थी, अतः वे उत्साह के साथ युद्ध करते थे। वारांगनाओं का युद्ध-स्थल में जाने का कारण यह था कि सैनिकों के स्त्री-बच्चे न होने से उनके मनोरंजन का साधन यही किया करती थीं। महा पुराण में ही वर्णित है कि सेना की रसद आदि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सेना के पीछे 'पाष्णि-सेना" होती थी। इसे 'रसद-सेना' की अविधा प्रदान किया जा सकता है। २. युद्ध के कारण : जैन पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय युद्ध के मुख्यतया तीन कारण थे-नारी, साम्राज्य-विस्तार तथा आत्म-सम्मान । इस कथन की पुष्टि आलोचित पुराणों के रचना काल के अन्य साक्ष्यों से भी होता है । सामान्यतया उक्त समस्याओं का समाधान पारस्परिक वार्तालाप के माध्यम से किया जाता था, परन्तु समाधान न होने पर युद्ध होना अपरिहार्य हो जाता था। ३. सैनिक-अभियान एवं युद्ध : राजा उत्तम ढंग से आयोजन कर युद्धअभियान के लिए प्रस्थान करता था। वह युद्ध स्थल के समस्त उपयोगी एवं अनिवार्य साधनों से सुसज्जित होकर चलता था। सेना के स्कन्धावार रास्ते में वहाँ लगाये जाते थे, जहाँ पर घास योग्य भूमि होती थी। आगे कथित है कि सेना की छावनी इस प्रकार निर्मित की जाती थी कि घोर वर्षा के उपरान्त भी एक बूंद पानी अन्दर नहीं जा सकता था। सेना का अभियान सेनानायक करता था। दोनों पक्षों १. महा ५८।११० २. वही ५२।४ ३. वही ८।१५६ ४. वही १२।२३ ५. वही २६।३०, ३५।१०७-११० ६. वही ४५११०७ ७. वही ३२।६० ८. वही १८१५८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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