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________________ २०४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन अनुसार ) में परामर्श देते थे ।' राजा के साथ विचार विनिमय के समय मंत्रीगण उपस्थित रहते थे । २ हरिवंश पुराण के वर्णनानुसार मंत्री राजा की अत्यन्त निकटस्थ आपत्तियों को निवारण करते थे । पद्म पुराण में तो यहाँ तक वर्णित है कि मंत्री राजकन्या के लिए सुयोग्य वर के चयनार्थ परामर्श भी देते थे । जैन पुराणों मंत्रीगण तन्त्र (स्वराष्ट्र) और अवाय ( परराष्ट्र के सम्बन्ध में राजा के साथ नीतिनिर्धारण करते थे ।" जैन पुराणों से यह भी ज्ञात होता है कि मंत्रीगण राजा को युद्ध के समय नीति विषयक मंत्रणा भी देते थे तथा विजय प्राप्ति के लिए देवताओं का पूजन भी किया करते थे । पद्म पुराण में वर्णित है कि राजा मंत्रियों की राय से शत्रु पक्ष के यहाँ दूत भेजते थे । उक्त पुराण में अन्यत्र दृष्टान्त मिलता है कि परीक्षित एवं विश्वासपात्र मंत्रियों के संरक्षण में राजा कोश, नगर, देश तथा प्रजा छोड़कर बाहर चले जाते थे । महा पुराण में उल्लिखित है कि चोरी के अपराध में मंत्री को उसके पद से तत्काल अपदस्थ कर दिया जाता था । १०. सामन्त व्यवस्था : जैन पुराणों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि आलोचित पुराणों के प्रणयनं काल में सामन्त व्यवस्था भी प्रचलित थी । राजा द्वारा युद्ध-काल में अधीनस्थ सामन्तों को युद्ध में सहयोगार्थ आमन्त्रित करने" और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें दूत के रूप में अन्य राजा के यहाँ भेजने का उल्लेख पद्म पुराण में उपलब्ध होता है ।" जैन पुराणों में यह उल्लेख भी समुपलब्ध है कि अधीनस्थ राजा या सामन्तगण अपने स्वामी को कुलपरम्परानुसार धन-धान्य, कन्या तथा अन्य अनेक वस्तुएँ देकर उनकी आराधना करते थे । १३ म्लेच्छ राजा चामरी गाय के बाल और १. पद्म ८ | १६; महा ४।१६० (तुलनीय - अर्थशास्त्र १।१५; मनु ७ । १४७ - १५० ; २ . वही ११।६५; हरिवंश ५०1११) कामन्दक ११।६५-६६; याज्ञवल्क्य ३. हरिवंश १४।६६ १।३४४ ४. पद्म १५।३६ ५. तन्त्रावाय महाभारं ततः प्रभृति भूपतिः । महा ४६।७२; पद्म १०३।६ महा ३२|५७; पद्म ४।४८७ ६. ७. पद्म ६६।१३ ८. इत्युक्ते तत्र निक्षिप्य कोशं देशं पुरं जनम् । निरक्रामत् पुराद राजा सहास्य सुपरीक्षितः ॥ महाभारत उद्योगपर्व ३७।३८ ६. सद्यो मन्त्रिपदाद् भ्रष्टो निग्रहं तादृशं गतः । पद्म ३७।१० १०. ११. वही ६६।१२ १२. महा २७।१५२; हरिवंश ११।१३ - २० Jain Education International For Private & Personal Use Only पद्म २३|४०; तुलनीय महा ५६ । १८६ www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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