SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ - जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन प्रजा-पालन करना ही राजा का मौलिक गुण कथित है। जैनेतर साहित्य में भी उक्त विचार उपलब्ध हैं । महा पुराण के कथनानुसार राजा अपने चित्त का समाधान करते हुए दुष्ट पुरुषों का निग्रह और शिष्ट पुरुषों का पालन करता है, वही उसका समज्जसत्वगुण है । पद्म पुराण के अनुसार शक्तिशाली एवं शूरवीर राजा कभी भयभीत नहीं होता है और ब्राह्मण, मुनि, निहत्थे व्यक्ति, स्त्री, बालक, पशु एवं दूत के ऊपर प्रहार नहीं करता है। राजा के गुणों का वर्णन करते हुए पद्म पुराण के प्रणेता रविषेणाचार्य ने लिखा है कि उसे सर्ववर्णधर, कल्याणप्रकृति, कलाग्राही, लोकधारी, प्रतापी, धनी, शूरवीर, नीतिज्ञ, शस्त्राभ्यास एवं व्यायाम से अविमुख, आपत्ति के समय निर्व्यग्र, विनम्र, मनुष्य का सम्मानदायी, सज्जनों का प्रेमी, दानी, हस्तिमदमन आदि गुणों से संयुक्त होना चाहिए।' अन्य स्थल पर उल्लेख आया है कि श्रेष्ठ राजा को लोकतन्त्र, जैन व्याकरण एवं नीतिशास्त्र का ज्ञाता तथा महागुणों से विभूषित होना चाहिए। राजा प्रचुर कोश का स्वामी, शत्रु-विजेता; अहिंसक, धर्म एवं यज्ञ आदि में दक्षिणा देने वालों का रक्षक होता था। राजा सत्यवादी एवं जीवों के रक्षक होते थे । जीवों की रक्षा करने के कारण ही उन्हें 'ऋषि' कहते थे । पिता के समान न्यायवत्सल होकर प्रजा की रक्षा करना, विचारपूर्वक कार्य करना, १. कृतात्मरक्षणश्चैव प्रजानामनुपालने । राजा यत्नं प्रकुर्वीत राज्ञां मौलो ह्ययं गुणः ।। महा ४२।१३७ महाभारत शान्तिपर्व ६७।१७, ७१।२-११; महाभारत सभापर्व १७।३०-३१; गरुडपुराण १।६६।२७ राजा चित्तं समाधाय यत्कुर्याद् दुष्टनिग्रहम् । शिष्टानुपालनं चैव तत्सामज्जस्यमुच्यते ॥ महा ४२।१६६ ४. पद्म ६६१६० वही २।५०-५६ सर्वेषु नमशास्त्रेषु कुशलो लोकतन्त्रावित् । जैनव्याकरणाभिज्ञो महागुणविभूषितः ॥ पप ७२१८८ ७. पद्म २७।२४-२५ ८. वही १११५८ इसी प्रकार के विचार की समता उड़ीसा में हाथीगुम्फा अभिलेख के जैनमतावलम्बी राजा खारवेल के गुणों से मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy