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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन मंगल गीत एवं वाद्यों का प्रचलन था। मांगलिक-पाठों द्वारा विवाह-क्रिया सम्पन्न होती थी।
२. वर्षवृद्धिदिनोत्सव (जन्मदिनोत्सव) : प्राचीन काल से हमारे यहाँ जन्मदिनोत्सव या वर्षवृद्धि दिनोत्सव की परम्परा प्रचलित रही है। इस उत्सव में मंगलगीत, वादिन तथा नृत्यादि की प्रधानता रही है ।२ जिस व्यक्ति का जन्म दिन मनाया जाता है, वह नव वस्त्र धारण कर उच्चासन पर बैठता है। मांगलिक गीत एवं नृत्य होता है । पुरोहित मांगलिक स्तोत्रोच्चारण करते हुए आशीर्वाद देते हैं। वयोवृद्ध एवं अग्रज व्यक्ति हार्दिक शुभकामनाओं सहित आशीर्वाद देते हैं। इस अवसर पर वह व्यक्ति यथाशक्ति निर्धन एवं अपंगु व्यक्ति को दान देता है । सगेसम्बन्धियों एवं इष्ट-मित्रों से इस सुअवसर पर उसे उपहार भी उपलब्ध होता है।
३. विजयोत्सव : राजा जब युद्ध में शत्रु पर विजय प्राप्त कर अपनी राजधानी में पहुँचता था तो वह बड़े उल्लास से विजयोत्सव का आयोजन करता था । सम्पूर्ण नगर अत्यन्त मनोरम ढंग से सुसज्जित किया जाता था। विभिन्न भाँति के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे। विजय में उपलब्ध धन का वितरण सैनिकों एवं निर्धनों में किया जाता था। यह उत्सव कई दिनों तक निरन्तर चलता रहता था।
४. मदनोत्सव : समराइच्चकहा में इस उत्सव के विषय में उल्लेख आया है कि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन इसे मनाया जाता था। नगर के किसी उद्यान में नर-नारी टोलियों में एकत्र होकर अत्यधिक उल्लास से इस उत्सव को मनाते थे। प्राचीन जैन ग्रन्थों में कतिपय लौकिक देवी-देवताओं के पूजनार्थ प्रतिवर्ष मेले लगते थे, जिसे 'मह' संज्ञा से सम्बोधित करते थे। इसका प्रयोग संस्कृत
१. पद्म २८।२६७; महा ७।२३८-२८०; हरिवंश १६५८; तुलनीय-गायत्री
वर्मा-कालिदास के ग्रन्थ : तत्कालीन संस्कृति, वाराणसी, १६६३, पृ० २७४-२७६ कदाचिद् तस्याऽऽसीद वर्षवृद्धिदिनोत्सवः ।
मङ्गलैीत वादिन नृत्यारम्भश्च संभृतः ॥ महा ११ ३. महा ५२-१२ ४. पद्म ७६५-१०४ ५. समराइच्चकहा ५, पृ० ३७३
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