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________________ १६० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन यष्टि के नहीं अपितु हार के हैं। महा पुराण में हार के ग्यारह भेद-इन्द्रच्छन्द, विजयच्छन्द, हार, देवच्छन्द, अर्द्ध हार, रश्मिकलाप; गुच्छ, नक्षत्रमाला, अर्द्ध गुच्छ, माणव एवं अर्द्ध माणव हैं।' महा पुराण में वर्णित है कि इन्द्रच्छन्द आदि हारों के मध्य में जब मणि जटित होती है तब उनके नामों के साथ माणव शब्द संयुक्त हो जाता है । इस प्रकार इनके नाम इन्द्रच्छन्द माणव, विजयच्छन्द माणव, हार माणव देवच्छन्द माणव आदि हो जाते हैं । २ उपर्युक्त पुराण के अनुसार ये सभी हार की कोटि में आते हैं। किन्तु नेमिचन्द्र शास्त्री ने इसी इन्द्रच्छन्द माणव और विजयच्छन्द माणव की परिगणना यष्टि के ग्यारह भेदों के अन्तर्गत किया है, जो कि उचित प्रतीत नहीं होता। (iii) कण्ठ के अन्य आभूषण : गले में धारण करने वाले अन्य आभूषणों के निम्नांकित के उल्लेख जैन पुराणों में द्रष्टव्य हैं-कण्ठमालिका' (स्त्री-पुरुष दोनों धारण करते थे), कण्ठाभरण' (पुरुषों का आभूषण), स्रक (फूल, स्वर्ण, मुक्ता एवं रत्न से निर्मित), काञ्चनसूत्र' (सुवर्ण या रत्नयुक्त), ग्रेवेयक', हारलता, हारवल्ली', हारवल्लरी", मणिहार", हाटक १२, मुक्ताहार", कण्ठिका", कण्ठिकेवास", (लाख को बनी हुई कण्ठी होती थी, जिसकी गणना निम्नकोटि में होती थी) आदि । [द] कराभूषण : हाथ के आभूषणों में अंगद, केयूर, कटक एवं मुद्रिका आदि प्रमुख हैं । स्त्री-पुरुष दोनों ही इन आभूषणों को धारण करते थे। केवल इनमें यही अन्तर रहता था कि पुरुषवर्गीय आभूषण सादे और स्त्रीवर्गीय के आभूषणों में घुघरू आदि लगे होते थे। १. महा १६१५५-६१ २. महा १६१६२ ३. वही ६८ ४. वही १५।१६३; हरिवंश ४७१३८ ५. पद्म ३१२७७, ८८।३१ ६. वही ३३।१८३; महा २६१६७ ७. महा २६।१६७; हरिवंश ११।१३ ८. वही १५।१६२ ६. वही १५।१६३ १०. वही १५।१६४ ११. वही १४।११ १२. पद्म १००।२५ १३. महा १५।८१; पद्म ३।१६१ १४. वही ६६५० १५. वही ११६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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