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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन ३. प्रकार एवं स्वरूप : पुरुषों द्वारा धार्य प्रधान वस्त्र उत्तरीय एवं अधोवस्त्र का उल्लेख पद्म पुराण में उपलब्ध है। हरिवंश पुराण में वस्त्रों को पाट, चीन एवं दुकूल नाम से तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है ।२ आलोचित जैन पुराणों में अधोलिखित वस्त्रों एवं वेषभूषाओं का विस्तारशः वर्णन उपलब्ध है :
अंशुक' : निशीथ चूर्णी में उल्लिखित है कि अंशुक में तारबीन का काम होता था। अलंकारों में जरदोजी का काम एवं उनमें स्वर्ण के तार से चित्र-विचित्र नक्काशियाँ निर्मित की जाती थीं। बृहत्कल्पसूत्रभाष्य' की टीका में यह कोमल एवं चमकीला रेशमी वस्त्र वर्णित किया गया है। समराइच्चकहा एवं आचारांग में अंशुक का उल्लेख प्राप्य है। मोतीचन्द्र के कथनानुसार यह चन्द्रकिरण एवं श्वेत कमल के सदृश्य होता था। बाण ने अंशुक को अत्यन्त स्वच्छ एवं झीनावस्त्र स्वीकार किया है। वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार यह उत्तरीय वस्त्र था जिसके ऊपर कसीदा द्वारा अनेक भाँति के फूल निर्मित किये जाते थे। रंगभेदानुसार अंशुक कई प्रकार के होते थे-जैसे, नीलांशुक, रक्तांशुक आदि । इसी प्रकार बिनावट के आधार पर इसके भेद-एकांशुक, अध्यांशुक, द्वयांशुक तथा त्रयांशुक आदि हैं । २ अंशुक वस्त्रों के अधोलिखित उपभेद मिलते हैं :
(i) शुकच्छायांशुक : यह सुआ पंखी यर्थात् हलके हरे रंग का महीन रेशमी वस्त्र था।
१. पद्म ४५०६७ २. हरिवंश ७८७ ३. पद्म ३।१६८; महा, १०।१८१, १५॥२३ ४. निशीथ ४, पृ० ४६७ ।। ५. बृहत्कल्पसूबभाष्य ४।३६-६१ ६. समराइच्चकहा १, पृ० ७४ ७. आचारांग २, ५, १, ३ । ८. मोती चन्द्र-वही, पृ० ५५ ६. वासुदेव शरण अग्रवाल-हर्ष चरित्र : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ७८ १०. पद्म ३।१६८ ११. महा १०।१८१, ११।१३३, १२।३०, १५।२३ १२. मोती चन्द्र-वही, पृ० ५५ १३. महा ६।५३
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