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________________ १३४ अक्षत' : अaण्ड चावल को अक्षत कहते हैं । व्रीहि: वर्षा ऋतु भारत में यह अत्यधिक प्रसिद्ध था । जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन तण्डुल' : यह छिलका पृथक् किया हुआ चावल है । शालि : इसकी पौध लगाकर रोपाई करते हैं । यह हेमन्त ऋतु में पक कर तैयार होता है । कलम' : यह चावल पतला, सुगन्धित एवं स्वादिष्ट होता है । सामा' : यह भी बिना बोये, बिना प्रयास के वनों में उत्पन्न होने वाला निर्धनों एवं ऋषियों का खाद्यान्न है । उत्पादित चावल को व्रीहि कहा गया है । प्राचीन साठी" : यह चावल वर्षा ऋतु में साठ दिन में पक कर तैयार हो जाता है । श्यामाक' : यह विशिष्ट प्रकार का धान्य है । कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तल में इसका प्रयोग किया है।" कोदो ( कोद्रव ) " : यह साँवा जाति का मोटा चावल है। इसका प्रयोग प्रायः निर्धन व्यक्ति ही करते हैं । यव" : प्रारम्भ में इसका प्रयोग सामान्य अन्न के लिए किया जाता था, किन्तु बाद में यह जौ के लिए रूढ़ि बन गया है। मांगलिक अवसरों पर इसका प्रयोग होता है । प्राचीन भारत का यह विशिष्ट अन्न है । १. २. गोधूम १२ : उत्तरी भारत का यह प्रमुख खाद्यान है । पश्चिमी भारत में इसकी अत्यधिक उपज होती है । राजमाष" : एक विशेष प्रकार की उड़द है । इसे बर्वटी या अलसान्द्र या ऐसा भी कहते हैं । दाल की दृष्टि से यह उत्तम अन्न है । महा ११।१३५ वही ३।१८६, तुलनीय - सिद्धान्त कौमुदी प्रकरण २।३।४६ ३. वही ३७।६७ ४. वही ४।६०; पद्म ५३।१३५ ५. वही ३।१८६ ६. वही ३३१८६ ७. वही ३।१८६ ८. वही ३।१८६ Jain Education International ६. १०. ११. १२. १३. अभिज्ञान शाकुन्तल ४ १४ महा ३।१८६, पद्म १३।६८ महा ३।१८६ महा ३।१८६; पद्म २२६, १०२ १०६ वही ३।१८७; वही २८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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