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________________ सामाजिक व्यवस्था १३१ निषेध किया गया है। जैनेतर ग्रन्थों में अति प्रातः, अर्धरात्रि एवं संधि-काल में आहार ग्रहण करना वर्जित है। हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि पूर्व देश का सुगन्धित भात, पाञ्चालदेशीय मूंग की स्वादिष्ट दाल, पश्चिमी देश की गायों का तपाया हुआ घी तथा कलिङ्गी गायों का मधुर दूध उचित आहार है।' हरिवंश पुराण में भोजन करने के बाद मुंह धोने, गन्ध लेप करने तथा भोजनोपरान्त सुपारी एवं इलायची युक्त ताम्बूल खाने का उल्लेख मिलता है।' २. भोजन (आहार) के स्वरूप एवं प्रकार : जैन सूत्रों में चार प्रकार के आहार वर्णित हैं-अशन, पान, खाद्य, तथा स्वाद्य । पप पुराण के अनुसार भोज्य पदार्थों के पाँच प्रकार-भक्ष्य, भोज्य, पेय, लेह्य तथा चूष्य हैं। (i) भक्ष्य : जिन पदार्थों को स्वादार्थ खाया जाता है उन्हें भक्ष्य कहते हैं । इसके कृत्रिम एवं अकृत्रिम दो उपभेद हैं । (ii) भोज्य : उन पदार्थों को कहते हैं, जिनका प्रयोग क्षुधा निवारणार्थ होता है । इसके मुख्य (रोटी आदि) एवं साधक (दाल-शाक आदि) दो उपभेद हैं । (iii) पेय : वे पदार्थ हैं जिनका पान किया जाता है । शीतयोग (शर्बत), जल तथा मद्य के भेदानुसार पेय तीन प्रकार के होते हैं। (iv) लेह्य : इसके अन्तर्गत वे पदार्थ आते हैं जिन्हें चाट कर स्वाद का आनन्द लिया जाता है, जैसे चटनी आदि । (v) चूष्य : इसके अन्तर्गत उन पदार्थों की गणना की जाती है जिनका रसास्वादन चूसकर करते हैं, जैसे ईख आदि । उक्त सभी पदार्थों से सम्बन्धित ज्ञान को आस्वाद्य विज्ञान कहते हैं। इनके पाचन (पचना), छेदन (तोड़ना), उष्णत्वकरण (गरम करना) तथा शीतत्वकरण (ठण्ढा करना) आदि भेद हैं । महा पुराण एवं हरिवंश पुराण में (i) अशन (भात, १. पद्म १४।२७२-२७३, १०६।३२-३३ २. मनु ४१५५- ६२; विष्णुधर्मसूत्र ६८।४८ ३. हरिवंश १८११६१ ४. वही ३६।२७-२८ ५. जगदीश चन्द्र जैनप्जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १६३-१६४ ६. पद्म २४।५३-५५ ७. वही २४१५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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