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________________ सामाजिक व्यवस्था १२६ ब्राह्मण ग्रन्थों, गृह्यसूत्रों एवं महाकाव्यों में सती प्रथा का प्रचलन अनुपलब्ध है। प्रथम ऐतिहासिक हिन्दू सेनापति केतु की मृत्यु पर उसकी पत्नी द्वारा सती होने का उदाहरण प्राप्य है। क्षत्रियों में सती प्रथा का प्रचलन ४०० ई० में हो गया था । पराशर, अग्नि पुराण, वात्स्यायन, कालिदास, शूद्रक, भास आदि ने सती के विषय में उल्लेख किया है। मनु, मेधातिथि, बाण, देवण भट्ट ने सती प्रथा का विरोध किया है। उत्तरी भारत एवं कश्मीर में ७०० से ११०० ई० तक सती प्रथा का अत्यधिक प्रचलन था। अरब व्यापारी सुलेमान १००० ई० में दक्षिण भारत के दकन प्रदेश में आया था। उसके अनुसार यहाँ पर सती प्रथा बहुत कम प्रचलित थी । सुदूर दक्षिण में १००० ई० में ही पल्लव, पाण्ड्य के राजपरिवारों में सती के उदाहरण अनुपलब्ध हैं । राजपूताना-जो मध्यकाल में सती प्रथा के लिए प्रसिद्ध था-से सबसे प्रारम्भिक सती पत्थर ८३८ ई० के पूर्व का नहीं मिलता । जोधपुर में ६५० ई० के बाद यह प्रथा प्रारम्भ होती है। उत्तरी भारत में सती प्रथा १००० ई० तक बहुत कम प्रचलित थी। __ वात्स्यायन ने कामसूत्र में पति के मरने पर पत्नी के लिए 'अनुमरण' शब्द का प्रयोग किया है, जो 'सहमरण' का समानार्थी है । परन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि स्त्री उसी चिता पर जलती थी या अन्य चिता पर ।२ क्षेमेन्द्र का कथन है कि बच्ची विधवा के भी पुनर्विवाह पर रोक लगा दी गयी थी। बारहवीं शती के देवण भट्ट के अनुसार पुनर्विवाह का निषेध किया गया था, जो संकुचित प्रवृत्ति का द्योतक है। परन्तु समाज के निम्नवर्ग में पुनर्विवाह होता था। राजतरंगिणी के अनुसार चन्द्रापीड़ की माता ने पुनर्विवाह किया था । परन्तु त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित के अनुसार इस प्रकार के विवाह रूढ़िवादी उच्च वर्ग में नहीं होते थे।३. अल्तेक २१८ ३६-१५३; भगवत शरण उपाध्याय २. चकलदर-वही, पृ० १८४ ३. यादव-वही, पृ० ७०-७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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