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________________ सामाजिक व्यवस्था १०६ है। वे प्राण देकर भी शील की रक्षा करती हैं। पद्म पुराण में स्त्रियों को स्वभाव से मृदु बताया गया है ।२ जैन पुराणों में स्त्रियों के शील के माहात्म्य की प्रशंसा की गयी है और वे देवता से भी नहीं डरती हैं। स्त्रियों में लज्जा स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। महा पुराण में स्त्री के रूप, लावण्य, कान्ति, श्री, द्युति, मति और विभूति आदि गुणों का वर्णन उपलब्ध है ।" सती पतिव्रता स्त्री का एक ही पति होता है। इसी पुराण में सतीत्व प्रशंसनीय माना गया है। पति के कुरूप, बीमार, दरिद्र, दुष्ट, दुर्व्यवहारी होने पर भी पतिव्रता स्त्रियाँ चक्रवर्ती राजा से भी सम्बन्ध नहीं रखती हैं। यदि कोई पुरुष बलात् भोग की इच्छा करता है तो कुलवती स्त्रियाँ दृष्टि से विषसर्प की भाँति उसे भस्म कर सकती हैं। इसी लिए कथित है कि समुद्रसहित पृथ्वी उठायी जा सकती है, परन्तु सतीत्व भ्रष्ट नहीं किया जा सकता। ४. स्त्रियों के दुर्गुण : जैनाचार्यों ने जहाँ एक ओर स्त्रियों के गुणों की प्रशंसा की है, वहीं दूसरी ओर उनके दुर्गुणों का भी सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण किया है । महा पुराण में वर्णित है कि स्त्रियाँ कुलीनता, अवस्था, रूप, विद्या, चारित्र, वंश, लक्ष्मी, प्रभुता, पराक्रम, कान्ति, इहलोक, परलोक, प्रीति; अप्रीति, ग्राह्य, अग्राह्य, दया, लज्जा, हानि, वृद्धि, गुण और दोष को कुछ भी नहीं गिनती।' पद्म पुराण के अनुसार स्त्रियाँ प्रकृति से भीरु होती हैं। हरिवंश पुराण में स्त्रियों को अकृतज्ञ कथित है ।१० महा पुराण में स्त्रियों के दोषों के विषय में यहाँ तक कहा १. विनश्यति न मे शीलं कुलशैलानुकारि तत् । महा ६८।२२३ २. मृदुचित्ताः स्वाभावेन भवन्ति किल योषितः । पद्म १५।११२ ३. महा ४७।२६६; पाण्डव १७।२६३ ४. पद्म ८।३५ ५. महा १२।१२ ६. वही ६२।४१ ७. वही ६८।१७५-१६०, तुलनीय-दशवकालिकर्णी १, पृ० ४६ ८. आभिजात्यं वयो रूपं विद्यां वृत्तं यशः श्रियम् । विभुत्वं विक्रमं क्रान्तिमैहिकं पारलौकिकम् ।। प्रीतिमप्रीतिमादेयम् अनादेयम् कृपां त्रयाम् । हानिबृद्धि गुणान् दोषान् गणयन्ति न योषितः ॥ महा ४३।१०१-१०२; तुलनीय-उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ६३; भगवती आराधना ६३८।१००२ ६. पद्म ७३।६५; तुलनीय-ऋग्वेद १०६५।१५; शतपथब्राह्मण ११।५।१६ १०. ... . . 'अकृतजा हि योषितः । हरिवंश २११७० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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