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________________ सामाजिक व्यवस्था १०७ पुत्री की अपेक्षा पुत्र को विशेष स्थान दिया गया था तथा पुत्र को परिवार की स्थायी सम्पत्ति समझा जाता था। कालान्तर में परिस्थितियों में परिवर्तन आया। हमारे आलोचित जैन पुराणों में स्त्रियों की स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। इनके अनुशीलन से उस समय की स्त्रियों की सामान्य स्थिति का ज्ञान प्राप्य होता है। महा पुराण के अनुसार स्त्रियों की स्थिति इतनी गिर गयी थी कि उन्हें महत्त्वपूर्ण कार्यों से पृथक् रखा जाता था ।२ पद्म पुराण में पत्नी को पति के अधीन परतन्त्र रखा गया था, जिससे पति के इच्छा के विपरीत वह कोई कार्य नहीं कर सकती थी। यही कारण है कि महा पुराण में स्त्रियों को मोक्ष का अधिकारी नहीं माना गया है। पद्म पुराण में वर्णित है कि उन्हीं स्त्रियों को स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है जो पातिव्रत का पालन करतीं थीं।" महा पुराण में केवल व्रत, शील आदि सत्क्रियाओं वाली स्त्रियों को ही पवित्र माना गया है तथा इसके विपरीत स्त्रियों को अशुद्धता की श्रेणी में रखा गया है। महा पुराण में उल्लिखित है कि पुरुष परस्त्री की प्राप्ति के लिए हर सम्भव प्रयत्न करता था। आवश्यकता पड़ने पर वह उसका अपहरण भी करता था । इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए गुणभद्र ने स्त्री-हरण को सभी पापों में सबसे बड़ा पाप कहा है। इसी लिए उन्होंने परस्त्री को अयोग्य, अनाथ, विनाश का कारण, पाप एवं दुःख का संचायक बता कर परस्त्री से प्रेम करने का निषेध किया है। पद्म पुराणकार ने तो पर स्त्री को माता कह कर समाज में आदर्श स्थापित किया था। इतने प्रतिबन्ध के विपरीत यदि कोई व्यक्ति परस्त्री के साथ प्रेम (गमन) करता था तो हरिवंश पुराण में उसके अंग-भंग के दण्ड की भी व्यवस्था मिलती है। १. अल्तेकर-पोजीशन ऑफ द वीमेन इन ऐंशेण्ट इण्डिया, बनारस, १६३८, पृ० ३ २. महा ६८७१ ३. पद्म १६।२८ ४. महा ४३।१११ ५. पद्म ८०।१४७ ६. महा ७२।६२ ७. वही ६८।११७ ८. वही ६८१४६० ६. परस्त्री मातृवद्.....। पद्म ७।१३६ १०. हरिवंश ४३।१८०-१८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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