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________________ सामाजिक व्यवस्था १०५ इस प्रकार धर्म से पुण्य, पुण्य से अर्थ और अर्थ से काम अभिलषित भोगों की प्राप्ति होती है । पुण्य के बिना अर्थ और काम नहीं मिल सकते । इसी बात को अन्य प्रकार से व्यक्त किया गया है कि धर्म एक वृक्ष है, अर्थ उसका फल है तथा काम फलों का रस है । इन तीनों को त्रिवर्ग कहते हैं । त्रिवर्ग की प्राप्ति का मूल कारण धर्म है | २ धर्म से ही अर्थ, काम एवं स्वर्ग की प्राप्ति होती है । धर्म ही काम तथा अर्थ का उत्पत्ति स्थान है । महा पुराण में वर्णित है कि ऋषभदेव को केवलज्ञान उत्पन्न होना धर्म है, पुत्र प्राप्ति काम का फल है और चक्र का प्रकट होना अर्थफल की प्राप्ति है । ये वर्ग पुरुषार्थ उनको प्राप्त हुए थे ।" I महा पुराण के अनुसार उक्त पुरुषार्थी को सज्जन अनुकूल मानते हैं और दुर्जन उनकी निन्दा करते हुए उनको प्रतिकूल मानते हैं ।" परन्तु इन पुरुषार्थों से लोगों का वैयक्तिक जीवन निखरता है, जिससे समाज का कल्याण होता है । हमारे जीवन के लिए पुरुषार्थ बहुत ही उपयोगी है । १. महा ४८।७ २ . वही २।३२ ३. वही २।३१ ४. वही २४।६ ५. वही ४४ । ३३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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