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________________ सामाजिक व्यवस्था पद्म पुराण में वर्णित है कि 'धरतीति धर्मः' अर्थात् जो धारण करे वह धर्म है । क्योंकि अच्छी तरह आचारित किया हुआ धर्म दुर्गति में पड़े हुए जीव को धारण कर लेता है । इसलिए वह धर्म कहलाता है । धर्म सुखोत्पत्ति का कारण है और अधर्म दुःखोत्पत्ति का । ऐसा समझकर धर्म की सेवा करनी चाहिए । महा पुराण में उल्लिखित है कि जो शिष्यों को कुगति से पृथक् कर उत्तम स्थान में पहुँचा दे, सत्पुरुष उसे ही धर्म कहते हैं । धर्म के मुख्य चार भेद वर्णित हैं- सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्य तथा सम्यक्तप । पद्म पुराण में पाँच समितियाँ, चार कषाय, पाँच इन्द्रियाँ, बाह्य तप तथा अन्तः तप को धर्म कहा गया है। पद्म पुराण में अणुव्रत तथा महाव्रत के भेद से धर्म दो प्रकार का वर्णित है और हरिवंश पुराण में अणुव्रत, शीलव्रत तथा गुणव्रत को धर्म कहा गया है। महा पुराण में अहिंसा को धर्म का लक्षण कथित २. अर्थ : आलोचित जैन पुराणों में धर्ममूलक अर्थवृत्ति पर विशेष बल दिया गया है । पद्म पुराण में उल्लिखित है कि इस संसार में द्रव्य आदि के लोभ से भाई आदि में वैरभाव उत्पन्न हो जाता है । इसका मूल कारण योनि सम्बन्ध न होकर अर्थ है ।" महाराज भरत को आयुधशाला में चक्ररत्न की प्राप्ति हुई थी, जो अर्थ पुरुषार्थ का फल है ।" जैन धर्म निवृत्तिमूलक होते हुए भी सांसारिक जीवन के लिए प्रवृत्त को स्वीकार करता है । इसी लिए उसने अर्जन, रक्षण, वर्धन तथा व्यय - इन चारों उपायों से धन संचय करने को कहा है ।" इस प्रकार जैन पुराणों में अर्थ पुरुषार्थ में न्यायपूर्वक अर्थ संचय करने को कहा गया है । ३. काम : धर्म एवं अर्थ के उपरान्त काम पुरुषार्थ का क्रम आता है । यद्यपि जैन धर्म में ब्रह्मचर्य व्रत पर विशेष बल दिया गया है, तथापि सामाजिक जीवन के लिए काम पुरुषार्थ को स्वीकार किया है । महा पुराण में वर्णित है कि इन्द्रियों के विषय में अनुरागी मनुष्यों को जो मानसिक तृप्ति होती है उसे काम कहते हैं ।" जिस प्रकार कोई रोगी पुरुष कटु औषधि का सेवन करता है, उसी प्रकार काम ज्वर से १. २. ३. ४. पद्म १४।१०३ - १०५ पद्म १४।३१० महा ४७।३०२-३०३ पद्म १४।१०७-१३६ ५. पद्म ११।३७ ६. हरिवंश ४५।८६ Jain Education International ७. ८. महा ४१।५२ पद्म ५८।६८ E. १०. वही ५१1७ ११. वही ५१।६ महा २४।३, २४६ १०३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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