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________________ १०० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन ६. दहेज प्रथा : दहेज के लिए 'प्रीतिदान' शब्द प्रयुक्त हुआ है। जैन पुराणों से ज्ञात होता है कि दहेज के रूप में पिता वर को धन देता था और दाम-दहेज देने पर विवाह सम्पन्न होता था। महा पुराण एवं पाण्डव पुराण में वर्णित है कि चक्रवर्ती राजा अपनी पुत्री को दहेज के रूप में हाथी, घोड़े, पियादे, रत्न, देश एवं कोष, कुल परम्परा में चला आया बहुत-सा धन आदि देते थे ।२ यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि दहेज प्रथा समाज में प्रचलित थी और लोग अपनी यथाशक्ति दहेज देते थे। ७. विवाह विधि : जैन आगमों में मैंगनी या तिलक जैसी कोई परम्परा का उल्लेख नहीं प्राप्य है । वस्तुतः पाणिग्रहण के निश्चयार्थ समाज के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समक्ष केवल एक श्रीफल के आदान-प्रदान को ही पर्याप्त माना गया था। आलोचित जैन पुराणों में विवाह-संस्कार का वर्णन मिलता है। महा पुराण में वर्णित है कि शिष्ट-जन एवं ज्योतिषियों के निदेशानुसार उत्तम एवं शुभ मुहूर्त, तिथि, करण, नक्षत्र तथा योग में कन्यादान का विधान विहित है। विवाह किसी तीर्थस्थान या सिद्ध प्रतिमाओं को सम्मुख रख कर सम्पन्न करते थे। विवाह के समय विशेष उत्सव मनाये जाते थे, जिनमें वाद्य-संगीत की प्रधानता थी। आवास-स्थल को सुसज्जित किया जाता था। इस अवसर पर सज्जनों एवं बन्धु-बान्धवों का समागम होता था। कुलांगनाएँ आशीर्वाद के लिए अक्षत का प्रयोग करती थीं। अभिषेक के उपरान्त वर-कन्या को यथाशक्ति सुन्दर वस्त्र एवं आभूषण पहनाते तथा प्रसाधन कराते थे। अभिषेक के बाद वे पूर्व दिशा में सिद्ध भगवान की पूजा करके तीन अग्नियों का पूजन करते थे । विवाह के समय वर-कन्या शृङ्गार करते थे। पाणिग्रहण के बाद वर-वधू १. पद्म ३८।६-१०, १०।११; महा ४५।३-४ २. महा ८।३६; पाण्डव ८।६७; तुलनीय-उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ८८; उपासक दशा ४, पृ० ६१; रामायण १७४-४ __ धनिराम जैन-संस्कृति और विवाह, श्रमण, वर्ष १३, अंक ४, फरवरी १६६२, पृ० १७-१८ ४. महा ७।२२१, ४३।१६१; तुलनीय-ज्ञाताधर्मकथा १।१; भगवतीशतक ११।११; निशीथ चूर्णी ३।१६८६ ५. महा ७।२२२, ४३।२६३, ३८।१२८-१२६, ७।२४६-२४८; तुलनीय-उत्तरा ध्ययनसूत्र २२।६-१० ६. महा ४३।१८३ - ७. महा ७।२१०-२३०; पाण्डव ३।२२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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