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________________ पावापुरी की महती सभा में भगवान् महावीर ने कहा है "सक्खं खु दीसइ तवो विसेसो, न दीसई जाइ-विसेस कोई। सो वाग-पुत्तो हरिएस साहू, जस्सेरिया इढि महाणुभागा।।* -उत्तराध्ययन १२, ३७ अर्थात् प्रत्यक्ष में जो कुछ महत्व दिखाई देता है, वह सब गुणों का ही है, जाति का नहीं। जो लोग जाति को महत्व देते हैं, वे वास्तव में बहुत भयंकर भूल करते हैं। क्योंकि जाति की महत्ता किसी भाँति भी सिद्ध नहीं होती। चांडाल-कुल में पैदा हुआ हरिकेश मुनि अपने गुणों के बल से आज किस महान् पद पर पहुँचा है। इसकी महत्ता के सामने विचारे जन्मतः ब्राह्मण क्या महत्ता रखते हैं ? महानुभाव हरिकेश में चांडालपन का क्या शेष है, वह तो ब्राह्मणों का भी ब्राह्मण बन गया है। सक्रिय विरोध भगवान् महावीर ने अपने धर्म-प्रचार-काल में जातिवाद का अत्यन्त कठोर सक्रिय खण्डन किया था, और एक तरह से उस समय जातिवाद का अस्तित्व ही नष्ट-सा हो गया था। जहाँ कहीं जातिवाद का प्रसंग आया है, भगवान् महावीर ने केवल पाँच जातियाँ ही स्वीकार की हैं, जो कि जन्म से मृत्यु-पर्यन्त रहती है, बीच में भंग नहीं होती। वे पाँच जातियाँ हैं-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय। इनके अतिरिक्त ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि लौकिक जातियों का जाति-रुप से आगम-साहित्य में कहीं पर भी विधानात्मक उल्लेख नहीं मिलता। यदि श्रमण भगवान महावीर प्रचलित जातिवाद को सचमुच मानते होते, तो वे वैदिक धर्म की भाँति कदापि अन्त्यज लोगों को अपने संघ - - - Jain Education International For Private & Pअगलाना महावीन और जातिवाद (173)rary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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