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परमात्म-पद की प्राप्ति होती है। और यह प्राप्ति, क्या कुछ कम लाभ
एक बात और पहले भी कहा जा चुका है कि जैन-धर्म परमात्मा में विश्वास अवश्य रखता है, उसकी भक्ति और स्तुति भी करता है, उसे सुख-दुःख का कर्त्ता मानकर नहीं, किन्तु उसके महान् गुणों को आदर्श मानकर। वह ईश्वर को एक परम विशुद्ध आत्मा के रुप में मानता है और प्रत्येक साधक के समक्ष आध्यात्मिक पवित्रता का यही आदर्श प्रस्तुत करता है।
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जैनत्व की झाँकी (142)
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