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________________ स्पष्ट हो जाता है कि घड़े का आकार और मिट्टी दोनों ही घड़े के अपने निजी स्वरुप हैं। ___अब देखना है कि इन दोनों स्वरुपों में विनाशी स्वरुप कौन-सा है और ध्रुव कौन-सा है। यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है कि घड़े का वर्तमान में दिखने वाला आकार कितना विनाशी है। क्योंकि यह बनता और बिगड़ता है। वह पहले नहीं था, बाद में भी नही रहेगा। जैन-दर्शनों में इसे पर्याय कहते हैं। और घड़े का जो दूसरा मूल स्वरुप मिट्टी है वह अविनाशी है, क्योंकि उसका कभी नाश नहीं होता। घड़े के बनने से पहले भी मिट्टी थी, घड़े के बनने पर भी वह मौजूद है, और घड़े के नष्ट हो जाने पर भी वह मौजूद रहेगी। मिट्टी अपने आप में पुद्गल स्वरुपेण स्थायी तत्व है, उसका कुछ भी बनना-बिगड़ना नहीं है। जैन-दर्शन में इसे द्रव्य कहते हैं। इतने विवेचन से अब यह स्पष्ट रुप से समझा जा सकता है कि घड़े का एक स्वरुप विनाशी है और दूसरा अविनाशी। एक जन्म लेता है और नष्ट हो जाता है, दूसरा सदा-सर्वदा बना रहता है, नित्य रहता है। अतएव अब हम अनेकान्तवाद की दृष्टि से यों कह सकते हैं कि घड़ा अपने मूल मिट्टी की दृष्टि से-अविनाशी रुप से नित्य है। जैन-दर्शन की भाषा में कहें तो यों कह सकते हैं कि घड़ा अपनी पर्याय की दृष्टि से अनित्व है और द्रव्य की दृष्टि से नित्य है। इस प्रकार एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी जैसे परिलक्षित होने वाले नित्यता औश्र अनित्यता रुप-धर्मो को सिद्ध करने वाला सिद्धांत ही अनेकांतवाद है। त्रिपदी अच्छा इसी विषय पर जरा और विचार कीजिए। जगत् के सब पदार्थ उत्पत्ति, स्थिति और विनाश-इन तीन धर्मों से युक्त है। जैन-दर्शन में इनके लिए क्रमशः उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसे त्रिपदी भी कहा जाता है। आप कहेंगे-एक - जैनत्व की झाँकी (130) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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