________________
सुनो। तुम सब सच्चे हो, कोई झूठा नहीं है। तुम में से किसी ने भी हाथी को पूरा नहीं देखा है। एक-एक अवयव को लेकर हाथी की पूर्णता का बखान कर रहे हो। कोई किसी को झूठा मत कहो, एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न करो। हाथी रस्से जैसा भी है, पूँछ की दृष्टि से। हाथी मूसल-जैसा भी है, सूंड़ की अपेक्षा से। हाथी छाज-जैसा भी है, कान की ओर से। हाथी कुदाल-जैसा भी है, दाँतों की दृष्टि से। हाथी खम्भे-जैसा भी है, पैरों की अपेक्षा से। हाथी अनाज की कोठी-जैसा भी है, पेट की दृष्टि से। इस प्रकार समझा-बुझा कर उस सज्जन ने एकांत की आग में अनेकान्त का पानी डाला। अन्धों को अपनी भूल समझ में आयी। और सब शान्त होकर कहने लगे–हाँ, भाई ! तुमने ठीक समझाया। सब अंगों के मिलने से ही हाथी होता है, एक-एक अलग-अलग अंग से नहीं !
वस्तुतः अन्धों ने हाथी के एक अंश को देखा और उसी पर जिद्द करने लग गए। आँख वाले ने सम्पूर्ण हाथी के रुप को समझाया तो उनका विग्रह समाप्त हो गया।
संसार में जितने भी एकांतवादी सम्प्रदाय हैं, वे सब पदार्थ के एक-एक अंग अर्थात् एक-एक धर्म को ही पूरा पदार्थ समझते हैं। इसीलिए दूसरे धर्म वालों से लड़ते-झगड़ते हैं। परन्तु वास्तव में वह पदार्थ नहीं, पदार्थ का एक अंश मात्र है। स्याद्वाद आँखों वाला दर्शन है। अतः वह इन एकांतवादी अन्धे दर्शनों को समझाता है कि तुम्हारी मान्यता किसी एक दृष्टि से ही ठीक हो सकती है सब दृष्टिओं से नहीं। अपने एक अंश को सर्वथा सब अपेक्षा से सत्य, और दूसरे अंशों को असत्य कहना, बिल्कुल अनुचित है। स्याद्वाद इस प्रकार एकांतवादी दर्शनों को भूल बताकर पदार्थ के सत्य स्वरुप को प्रस्तुत करता है और प्रत्येक सम्प्रदाय को किसी एक अपेक्षा से ठीक बतला कर साम्प्रदायिक कलह को शान्त करने की क्षमता रखता है। केवल साम्प्रदायिक कलह को नहीं, क्या समाज, और क्या राष्ट्र, सभी में प्रेम
-
-
जैनत्व की झाँकी (128) Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org