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क्या जैन धर्म नास्तिक है ?
आज हम इसी पर विचार करेंगे कि जैन-धर्म को जो लोग नास्तिक धर्म कहते हैं, वे कहाँ तक ठीक हैं।
जैन-धर्म पूर्णतः आस्तिक धर्म है । उसे नास्तिक धर्म कहना, सर्वथा असंगत है।
प्रश्न है कि भारत के कुछ लोग जैन-धर्म को नास्तिक क्यों कहने लगे । इसका भी एक इतिहास है । अज्ञानता के कारण भारत में जब यज्ञ- योग आदि का प्रचार हुआ और धर्म के नाम पर दीन-हीन मूक पशुओं की हिंसा प्रारम्भ हुई तब भगवान महावीर ने इस अन्धविश्वास और हिंसा का जोरदार विरोध किया । यज्ञ - योग आदि के समर्थन में आधारभूत मुख्य ग्रन्थ वेद थे । अतः हिंसा का समर्थन करने के कारण वेदों को भी अमान्य किया गया। इस पर कुछ मताग्रही लोगों में बड़ा क्षोभ फैला। वे मन ही मन झुझला उठे। जैनधर्म के अकाट्य तर्कों का तो कोई उत्तर दिया नहीं गया । किन्तु यह कह कर शोर मचाया जाने लगा कि जो वेदों को नहीं मानते हैं, जो वेदों की निन्दा करते हैं, वे नास्तिक हैं, "नास्तिको वेद- निन्दक । " तब से लेकर आज तक जैन-धर्म पर यही आक्षेप लगाया जा रहा है। तर्क का उत्तर तर्क से न देकर गाली-गलौच करना, तो स्पष्ट दुराग्रह और साम्प्रदायिक अभिनिवेश है। कोई भी तटस्थ बुद्धिमान विचारक कह सकता है कि यह सत्य के निर्णय करने की कसौटी नहीं है।
वैदिक धर्मावलम्बी जैन-धर्म की वेद - निन्दक होने के कारण यदि नास्तिक कह सकते हैं, तो फिर जैन भी वैदिक-धर्म को जैन - निन्दक होने के कारण नास्तिक कह सकते हैं- 'नास्तिको जैन-निन्दकः । परन्तु यह कोई अच्छा मार्ग नहीं हैं यह कौन सा तर्क है कि वैदिक धर्म के ग्रन्थों को न मानने वाला नास्तिक कहलाए और जैन-धर्म के ग्रन्थों को न मानने वाला नास्तिक न कहलाए ? सच तो यह कि कोई भी धर्म अपने से विरुद्ध किसी अन्य धर्म के ग्रन्थों को
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