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हुआ और मनुष्य के हृदय में मनुष्य क्या, पशुओं के प्रति भी दया, प्रेम और करुणा की अमृतगंगा बह उठी । संसार में स्नेह सद्भाव और मानवोचित अधिकारों का विस्तार हुआ। संसार की मातृजाति नारि को फिर से योग्य सम्मान मिला। शूद्रों को भी मानवीय ढंग से जीने का अधिकार प्राप्त हुआ और निरीह पशु भी मनुष्य के क्रूर - हाथों से अभय-दान पाकर भयमुक्त हुए । अहिंसा की प्रतिष्ठा से संसार के सद्भाव और प्रेम की गंगा बहने लगी ।
दुर्भाग्य से आज वह प्रेम और सद्भाव की गंगा फिर सूखने जा रही है। 'अभय' और 'मैत्री' के उपवन में आज भय, छल, प्रपंच और धोखाधड़ी के झाड़-झंखाड़ फिर से खड़े हो रहे हैं। संसार विगत दो महायुद्धों की विभीषिका को अभी भूला नहीं है कि तीसरे महायुद्ध के बादल उसके क्षितिज पर मंडराने लगे हैं । प्रत्येक देश शक्ति एवं सेना के विस्तार की होड़ में दौड़ रहा है, भयानक शस्त्रास्त्रों का विस्तार एवं निर्माण करता जा रहा है। संसार युद्ध और महानाश के द्वार पर खड़ा है ।
व्यक्ति, समाज और राष्ट्र आज अविश्वास, भय और आशंकाओं से घिरे हुए हैं। उनका मन, बुद्धि और जीवन अशान्त और भयाक्रान्त-सा है । ऐसे समय में शान्ति और विश्वास का वातावरण निर्माण करने वाली कोई शक्ति है, तो वह अहिंसा ही है अहिंसा ही मानव-मानव को परस्पर प्रेम, सद्भाव एवं सहयोग के सूत्र में बाँध सकती है। प्रसिद्ध जैनाचार्य समन्तभद्र के शब्दों में- 'अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्" अर्थात् अहिंसा ही प्राणियों के लिए परब्रह्म या परम संजीवनी शक्ति है ।
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