________________
साधना का लक्ष्य है जीवन की दिव्यता प्राप्त करना । दिव्यता प्राप्त करने के लिए आदर्शरुप में 'देव' की उपासना और भक्ति आवश्यक है, किन्तु इससे पहले यह भी जान लेना चाहिए कि 'देव' किसे कहते हैं।
देव
जैन-धर्म विश्व का एक महान् धर्म है। इसकी आधार शिला भौतिक विजय पर नहीं आध्यात्मिक विजय पर है। यह बाहर का धर्म नही, अन्दर में आत्मा का धर्म है। अधिक गहराई में न जाकर केवल 'जैन' शब्द पर ही विचार करें तो इस सत्य का मर्म स्पष्ट हो सकता है।
जैन का अर्थ है- 'जिन' को मानने वाला। जो जिन को मानता हो, जिन की भक्ति करता हो, जिन की आज्ञा में चलता हो और जो अपने अन्दर में जिनत्व के दर्शन करता हो, जिनत्व के पथ पर चलता हो, वह जैन कहलाता है।
जिन का अर्थ
प्रश्न हो सकता है, 'जिन' किसे कहते हैं। जिन का अर्थ है, जीतने वाला । असली शत्रु कौन है ? असली शत्रु राग और द्वेष है। बाहर के कल्पित शत्रु इन्हीं के कारण पैदा होते हैं ।
राग किसे कहते हैं ? मनपसन्द चीज पर मोह । द्वेष क्या है ? I नापसन्द चीज से घृणा । ये राग और द्वेष दोनों साथ रहते हैं । जिसको 1 राग होता है, उसे किसी के प्रति द्वेष भी होता है और जिसे द्वेष होता है, उसे किसी के प्रति राग भी होता है ।
१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
देव (1) www.jainelibrary.org