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________________ में आने वाले आवश्यक शस्त्रों से अधिक शस्त्र-संग्रह न करें। साधनों का आधिक्य मनुष्य को उदण्ड और बेलगाम बना देता है । प्रभुता की लालसा में आकर वह कभी-न-कभी किसी पर चढ़ दौड़ेगा और मानव-संसार में युद्ध की आग भड़का देगा। इस दृष्टि से जैन तीर्थंकर हिंसा के मूल कारणों को दूर करने का प्रयत्न करते रहे हैं। जैन तीर्थंकारों ने कभी भी युद्धों का समर्थन नही किया। जहाँ अनेक धर्माचार्य साम्राज्यवादी राजाओं के हाथों की कठपुतली बनकर युद्ध का उन्मुक्त समर्थन करते आए हैं, युद्ध में मरने वालों को स्वर्ग का लालच लिखाते आये हैं, राजा को परमेश्वर का अंश बताकर उसके लिए सब कुछ अर्पण कर देने का प्रचार करते आए हैं, वहाँ जैन - तीर्थंकर इस सम्बन्ध में बहुत ही स्पष्ट और दृढ़ रहे हैं। 'प्रश्न व्याकरण' और 'भगवती सूत्र' युद्ध के विरोध में बहुत कुछ कहते हैं । यदि थोड़ा सा कष्ट उठाकर देखने का प्रयत्न करेंगे, तो वहाँ बहुत कुछ युद्ध-विरोधी विचार सामग्री प्राप्त कर सकेंगे। मगधाधिपति अज्ञातशत्रु कोणिक महावीर का कितना उत्कृष्ट भक्त था ? 'अनुत्तरोपपातिक सूत्र में उसकी भक्ति का चित्र चरम सीमा पर पहुँचा हुआ है । प्रतिदिन भगवान् के कुशल- समाचार जान कर फिर अन्न-जल ग्रहण करना, कितना उग्र नियम है ! परन्तु वैशाली पर कूणिक द्वारा होने वाले आक्रमण का भगवान् ने जरा भी समर्थन नहीं किया। प्रत्युत कूणिक के प्रश्न पर उसे अगले जन्म में नरक का अधिकारी बताकर उसके क्रूर कर्मों को स्पष्ट ही धिक्कारा है। अज्ञातशत्रु इस पर रुष्ट भी हो जाता है, किन्तु भगवान् महावीर इस बात की कुछ भी परवाह नहीं करते । भला, अहिंसा के अवतार उसके रोमाचंकारी नरसंहार का समर्थन कैसे कर सकते थे। अहिंसा निष्क्रिय नहीं है जैन तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट अहिंसा निष्क्रिय नहीं है। वह विध्यात्मक हैं। जीवन के भावात्मक रुप प्रेम, परोपकार एवं विश्वबन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत है। जैन धर्म की अहिंसा का Jain Education International For Private & Personal Use Only अहिंसा (107) www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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