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अहिंसा जैन संस्कृति की आत्मा है। जीवन की उन्नति और शांति का मूल अहिंसा की भावना के साथ जुड़ा हुआ है।
हिंसा के सम्बन्ध में पिछले अध्याय में आपने पढ़ा, अब पढ़िए अहिंसा का स्वरुप और उसकी साधना-पद्धति ।
जैन - संस्कृति की अमर देन : अहिंसा
जैन - संस्कृति की संसार को जो सबसे बड़ी देन है, वह हैं अहिंसा । अहिंसा का यह महान् विचार, जो आज विश्व की शान्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन समझा जाने लगा है, और जिसकी अमोघ शक्ति के सम्मुख संसार की समस्त संहारक शक्तियाँ कुण्ठित होती दिखाई देने लगी हैं, जैन संस्कृति का प्राण है, जैन-धर्म का आधार है । दुःख मनुष्य ने ही पैदा किया है।
जैन - संस्कृति का महान् सन्देश है कि कोई भी मनुष्य समाज से सर्वथा पृथक् रहकर अपना अस्तित्व कायम नहीं रख सकता। समाज में घुल-मिल कर ही वह अपने जीवन का आनन्द उठा सकता है और आस-पास के संगी-साथियों को भी उठाने दे सकता है। जब यह निश्चित है कि व्यक्ति समाज से अलग नहीं रह सकता, तब यह भी आवश्यक है कि वह अपने हृदय को उदार, विशाल तथा विराट् बनाये और जिन लोगों से खुद को काम लेना है या जिनको देना है, उसके हृदय में अपनी ओर से पूर्ण विश्वास पैदा करें। जब तक मनुष्य अपने पार्श्ववर्ती समाज में अपनेपन का भाव पैदा नहीं करेगा अर्थात् जब तक दूसरे लोग अपना न समझेंगे और वह भी दूसरों को अपना न समझेगा, तब तक समाज का कल्याण नहीं हो सकता । मनुष्य : मनुष्य
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