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________________ आनन-रत्न सुख हो दुख हो कुछ प्रभु के अविराम गुणस्तव गावत है । प्रिय मित्र तथा अरि हो सबको हित शिक्षण सत्य सुनावत है ॥ अपने गुण के प्रति मौन रहे पर के गुण स्पष्ट बतावत है | नय रत्न जगत्त्रय पूजित का वह ' आनन रत्न' दिनांक : १० मई १९३६ कहावत है ॥ जय समुद्र हस्त- रत्न मरणोन्मुख रंक बुभुक्षित हो पर - द्रव्य कभी न उठावत हैं । दलितादिक वेकस बेवस की गह बाँह स्वबन्धु बनावत हैं | निज देश- समाज - हितार्थ सभी धनराशि सहर्ष लुटावत हैं । नर रत्न जगत्त्रय पूजित के 'कर युग्म सुरत्न' दिनांक : १० मई १९३६ कहावत हैं || जय समुद्र चरण-रत्न प्रण-वीर महान, न स्वत्व कभी पथनीति विसार गँवावत हैं । मिल जाय यदा पर दुख-कथा झट तत्र स्व- दौड़ लगावत हैं । कट जाय सहर्ष रणांगण में पर पैर न एक डिगावत हैं । नर-रत्न जगत्त्रय पूजित के 'चरणोत्तम रत्न' कहावत हैं । दिनांक : १० मई १९३६ जय समुद्र [ ४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001348
Book TitleKavyanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1989
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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