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२६ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ चाहिए।" आदेश देकर सम्राट धमधमाते हुए आगे बढ़ गए। ___ अभयकुमार बुद्धिमान था । वह सम्राट के क्रोध को सम झता था। क्रोध में मनुष्य विवेक खो बैठता है। अविवेक से किया गया कार्य आखिर में दुखःदायी होता है। उसने राजमहल के पास में खड़े गजशाला के घास-फूस के झोंपड़े खाली करवाये और उनकी होली जला डाली। सम्राट के आदेश का पालन भी हुआ और भयंकर दुर्घटना भी होते-होते बच गई।
आदेश देकर सम्राट नगर से बाहर चले गये थे। इधरउधर वन-प्रदेश में घूमते रहे। परन्तु, उनके मन में वह वहम बार-बार तीखे काँटे को तरह खटक रहा था। उन्हें शान्ति वहीं मिल रही थी। आखिर समाधान के लिए श्रमण भगवान् महावीर की धर्म · सभा में पहुँचे । चरण - वन्दना की और सांकेतिक शब्दों में पूछा-"प्रभो ! वैशाली गणराज्य के स्वामी चेटक की पुत्री के एक-पति है या अनेक-पति ?"
प्रभु महावीर ने कहा- “राजन् ! चेटक की एक पुत्री क्या सातों ही पुत्रियाँ एक-पति है। सती-साध्वी हैं । तुम्हारे अन्तः पूर की समस्त रानियाँ पवित्र तथा पतिव्रत्य धर्म का पालन करने वाली हैं।"
सम्राट् प्रभु की वाणी सुनते ही दिङ मूढ़-से देखते रह गए। प्रभू महावीर ने सम्राट के मन का संदेह मिटाते हुए कहा
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