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________________ हम जिन्दगी के किसी भी मोर्चे पर अड़कर खड़े नहीं हो सकते । आत्मा की अमरता का सिद्धान्त हमें यह मधुर प्रेरणा देता है, कि हमें भयंकर से भयंकर संकट काल में, यहाँ तक कि मृत्युकाल में भी अपनी शाश्वत अमरता में विश्वास होना चाहिए । यदि आत्मा की अनन्त अमरता में विश्वास हो जाता है, तो फिर जीवन में किसी भी प्राकर का भय शेष नहीं रहने पाता । इसीलिए मैं आपसे कहता हूँ, कि निर्भय बनो और अपने जीवन में जो भी कुछ करो, उसे निर्भयता के साथ करो । अध्यात्म-साधना यहाँ पर मुझे एक कथानक का स्मरण हो आया है । एक गाँव था, क्षत्रियों का, और उसके पास में ही एक दूसरा गाँव था, कोलियों का । दोनों में परस्पर लूटमार चलती रहती थी । जब कभी जिसका दाव लगता, वही दूसरे को लूट लेता था, किन्तु क्षत्रिय अधिक ताकतवर थे, अतः अन्ततः उनका ही पलड़ा भारी रहता था । एक दिन कोलियों ने विचारा कि ये क्षत्रिय लोग हमें सदा तंग करते एवं लूटते रहते हैं । तब क्यों न सामूहिक रूप में एक बार आकस्मिक आक्रमण करके हमेशा के लिए इन्हें ठीक कर दिया जाए । वे लोग आपस में विचार करने लगे, कि हमला कब किया जाए ? कैसे किया जाए ? क्षत्रियों पर आक्रमण करना आसान न था । फिर भी यह सोचा गया कि रोज-रोज मरने की अपेक्षा यदि एक ही दिन निबट लिया जाए, तो अच्छा रहेगा । वे सब लोग एकत्रित होकर रात्रि के अँधेरे में क्षत्रियों के ग्राम के बाहर एकत्रित हो गये । विचार किया कि अभी तो रात्रि का प्रारम्भ है, क्षत्रिय लोग जाग रहे होंगे, अतः जब रात्रि अधिक बीत जाए और सब सो जाएँ, तभी आक्रमण करना ठीक होगा । मनुष्य का यह स्वभाव है कि जहाँ बल से काम नहीं होता, वहाँ वह छल से काम करना चाहता है । गाँव के बाहर जंगल में, वे सब लोग एक स्थान पर ठहर कर, गहरी रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगे । वे सब पंक्ति बनाकर सिपाहियों के समान अपने-अपने मोर्चे पर डट गये । तेजोहीन लोगों के संकल्प अधिक देर तक जागृत नहीं रहते । उन्हें यहाँ बैठे-बैठे नींद के झौके आने लगे, और धीरे-धीरे सब पैर पसार कर सो गये, खरटि लेने लगे, परन्तु सबसे अगली पंक्ति वालों को भय के कारण नींद नहीं आ रही थी, वे सोचने लगे कि यदि कहीं मालूम हो गया और क्षत्रियों ने ही हम पर आक्रमण कर दिया, तो सबसे पहले हम ही मरेंगे सबसे पीछे की पंक्ति में जाकर सो गये । अतः वे चुपके से उठे और । इसके बाद दूसरी पंक्ति वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only ५१ www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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