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________________ समाज और संस्कृति को । मेरे विचार में, व्यक्तिवादी समाज और समाजवादी व्यक्ति ही अधिक उपयुक्त है । हमें एकान्तवाद के झमेले में न पड़कर अनेकान्त-दृष्टि से ही इस विषय को सोचने और समझने का प्रयत्न करना चाहिए । अनेकान्तवादी दृष्टिकोण ही सही दिशा का निर्देश कर सकता है । अनेकान्तवादी से दृष्टिकोण यदि हम समाज और व्यक्ति के सम्बन्धों पर विचार करेंगे, तो हमें एक नया ही प्रकाश मिलेगा । अनेकान्तवादी दृष्टिकोण में समष्टि और व्यष्टि परस्पर एक दूसरे से सम्बद्ध हैं । समष्टि क्या है ? अनेकता में एकता । और व्यष्टि क्या है ? एकता में अनेकता । एक को अनेक बनना होगा और अनेक को एक बनना होगा । इस प्रकार की समतामयी और अनेकान्तमयी दृष्टि से ही हमारे समाज और हमारे राष्ट्र का कल्याण हो सकेगा । २५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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