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समाज और संस्कृति
अनेकान्त वादी वह है, जो दुराग्रह नहीं करता । अनेकान्तवादी वह है, जो दूसरों के मतों को भी आदर से देखना और समझना चाहता है । अनेकान्तवादी वह है, जो अपने सिद्धान्तों को भी निष्पक्षता के साथ परखता है । अनेकान्तवादी वह है, जो समझौते को अपमान की वस्तु नहीं मानता । सम्राट अशोक और सम्राट हर्षवर्धन बौद्धिक दृष्टि से अहिंसावादी और अनेकान्तवादी ही थे, जिन्होंने एक सम्प्रदाय विशेष में रहकर भी सभी धर्मों की समान भाव से सेवा की । इसी प्रकार मध्ययुग में सम्राट अकबर भी निष्पक्ष सत्य-शोधक के नाते अनेकान्तवादी था, क्योंकि परम सत्य के अनुसंधान के लिए उसने आजीवन प्रयत्न किया था ।
परमहंस रामकृष्ण सम्प्रदायातीत दृष्टि से अनेकान्तवादी थे, क्योंकि हिन्दू होते हुए भी सत्य के अनुसन्धान के लिए उन्होंने इस्लाम और ईसाई मत की साधना भी की थी । और गाँधी का तो एक प्रकार से सारा जीवन ही अहिंसा और अनेकान्त के महापथ का यात्री रहा है । मेरा यह दृढ़ निश्चय है, कि अहिंसा और अनेकान्तके बिना तथा समता और समन्वय के बिना भारतीय संस्कृति चिरकाल तक खड़ी नहीं रह सकती । जन-जन के जीवन को पावन और पवित्र बनाने के लिए, समता और समन्वय की बड़ी आवश्यकता है । विरोधों का परिहार करना तथा विरोध में से भी विनोद निकाल लेना, इसी को समन्वय कहा जाता है। समन्वय कुछ बौद्धिक नहीं है, वह तो मनुष्यों की इसी जीवन-भारती का जीता-जागता रचनात्मक सिद्धान्त है । समता का अर्थ है- स्नेह, सहानुभूति और सद्भाव । भला, इस समता के बिना मानव-जाति कैसे सुखी और समृद्ध हो सकती है ? परस्पर की कटुता और कठोरता को दूर करने के लिए समता की बड़ी आवश्यकता है । . ___ संस्कृति के सम्बन्ध में और उसके स्वरूप के सम्बन्ध में तथा उसके मूल तत्वों के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा जा चुका है । अब एक प्रश्न और है, जिस पर विचार करना आवश्यक है, और वह प्रश्न यह है, कि. क्या संस्कृति और सभ्यता एक है अथवा भिन्न-भिन्न है ? संस्कृति और सभ्यता शब्दों का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है । पाश्चात्य विद्वान टाइलर का कथन है कि सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं ।
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