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________________ संस्कृति की सीमा के विनाशक तत्वों को चुनौती देती रहती है । रोम और मिश्र की संस्कृति धूलिसात् हो चुकी हैं, जब कि वे संस्कृतियाँ भी उतनी ही प्राचीन थीं, जितनी कि भारत की संस्कृति प्राचीन थी । भारत की संस्कृति का मूल तत्व अथवा प्राणतत्व हैं, अहिंसा और अनेकान्त, समता और समन्वय । वस्तुतः विभिन्न संस्कृतियों के बीच सात्विक समन्वय का काम अहिंसा और अनेकान्त के बिना नहीं चल सकता । तलवार के बल पर हम मनुष्य को विनष्ट कर सकते हैं, पर उसे जीत नहीं सकते । असल में मनुष्य को जीतना, उसके हृदय पर अधिकार पाना है और उसका शाश्वत उपाय समर भूमि की रक्त से लाल कीच नहीं, सहिष्णुता का शीतल प्रदेश ही हो सकता है । आज से ही नहीं, अनन्तकाल से भारत अहिंसा और अनेकान्त की साधना में लीन रहा है । अहिंसा और अनेकान्त को समता और समन्वय भी कहा जा सकता है । अहिंसा और अनेकान्त पर किसी सम्प्रदाय - विशेष का लेबिल नहीं लगाया जा सकता । ये दोनों तत्व भारतीय संस्कृति के कण-कण में रम चुके हैं और भारत के जन-जन के मन-मन में प्रवेश पा चुके हैं । भले ही कुछ लोगों ने यह समझ लिया हो, कि अहिंसा और अनेकान्त, जैन धर्म के सिद्धान्त हैं । बात वस्तुतः यह है, कि सिद्धान्त सदा अमर होते हैं, न वे कभी जन्म लेते हैं और न वे कभी मरते हैं । अहिंसा और अनेकान्त को श्रमण भगवान महावीर ने जन-चेतना के समक्ष प्रस्तुत किया एवं प्रकट किया, इसका अर्थ यह नहीं है, कि वह जैन धर्म के ही सिद्धान्त हैं, बल्कि सत्य यह है, कि वे भारत के और भारतीय संस्कृति के अमर सिद्धान्त हैं । क्योंकि भगवान महावीर और जैन धर्म अभारतीय नहीं थे । यह बात अलग है, कि भारत की अहिंसा - साधना जैन धर्म में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची, और जैन-धर्म में भी समन्वयात्मक विचार का उच्चतम शिखर अनेकान्तवाद अहिंसा का ही चरम विकास है । अनेकान्तवाद नाम यद्यपि जैनाचार्यों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है, किन्तु जिस स्वस्थ दृष्टिकोण की ओर यह सिद्धान्त संकेत करता है, वह दृष्टिकोण भारत में आदिकाल से ही विद्यमान था । सहिष्णुता, उदारता, सामासिक संस्कृति, अनेकान्तवाद, समन्वयवाद, अहिंसा और समता – ये सब एक ही सत्य के अलग-अलग नाम हैं । Jain Education International - For Private & Personal Use Only २४७ www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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