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________________ संस्कृति की सीमा - और पहचाने जा सकते हैं । चींटियाँ अनाज के कणों को एकत्रित तो कर देती हैं, किन्तु उनका एक दूसरे में विलय नहीं कर पातीं । भारतीय संस्कृति मधु-मक्खियों की प्रक्रिया रही है । मधुमक्खियाँ अनेक वर्गों के फूलों से विभिन्न प्रकार का रस एकत्रित करके मधु के रूप में उसे एक ऐसा स्वरूप देती हैं, कि कोई भी एक फूल वहाँ सबसे ऊपर नहीं बोलता । भारतीय संस्कृति, अनेक संस्कृतियों के योग से बना हुआ वह मधु है, जिसमें विभिन्न वर्गों के पुष्पों का योगदान रहा है, किन्तु फिर भी सबका समानीकरण हो चुका है । ___ भारत की यह सांस्कृतिक एकता, मुख्यतः दो कारणों पर आधारित है- पहला कारण तो भारत का भूगोल है, जिसने उत्तर और पूर्व की ओर पहाड़ों से तथा दक्षिण और पश्चिम की ओर समुद्रों से घेर कर भारत को स्वतन्त्र भू-भाग का रूप दे दिया है । दूसरा कारण. इस एकता का एक प्रमुख कारण हिन्दू धर्म भी है, जो किसी भी विश्वास के लिए दुराग्रह नहीं करता, जो सहिष्णुता, स्वाधीन चिन्तन एवं वैयक्तिक स्वतन्त्रता का संसार में सबसे बड़ा समर्थक रहा है । यही कारण है, कि भारत के विशाल मैदानों में सभी प्रकार के धर्मों को पनपने का समान अवसर मिला है । यहाँ पर कट्टर ईश्वरवादी धर्म भी पनपा है और यहाँ पर परम नास्तिक चार्वाक जैसा दर्शन भी पल्लवित हुआ है । भारत में साकार की उपासना करने वाले भी रहे हैं और निराकार की उपासना करने वाले भी रहे हैं । धर्म के विकास के लिए और अपने-अपने विचार का प्रचार करने के लिए, भारत में कभी किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं रहा है । यहाँ पर साधक एवं उपासक को इतनी स्वतन्त्रता रही है, कि वह अपने आदर्श के अनुसार किसी भी एक देवता को माने, अथवा अनेक देवताओं को माने । भारत में वेद का समर्थन करने वाले भी हुए और वेद का घोर विरोध करने वाले भी हुए हैं । भारत की धरती पर मन्दिर, मस्जिद और चर्च तीनों का सुन्दर समन्वय हुआ है । मेरे विचार में इस एकता और समन्वय का कारण भारतीय दृष्टिकोण की उदारता एवं सहिष्णुता ही है । यही कारण है, कि भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है,जिसमें अधिक से अधिक संस्कृतियों का रंग मिला हुआ है और जो अधिक से अधिक विभिन्न जातियों की मानसिक एवं आध्यात्मिक एकता का प्रतिनिधित्व कर सकती है । बडे खेद की बात है. कि आज का. नवीन भारत, आज के नवीन - २४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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