________________
समाज और संस्कृति
का समादर करता है । याद रखिए, समाज के विकास में ही आपका अपना विकास है । और समाज के पतन में आपका अपना पतन है । समाज का विकास करना, यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है । जब तक व्यक्ति में सामाजिक भावना का उदय नहीं होता है, तब तक वह अपने आपको बलवान नहीं बना सकता । एक बिन्दु जल का क्या कोई अस्तित्व रहता है ? किन्तु वही बिन्दु जब सिन्धु में मिल जाता है, तब क्षुद्र से विराट हो जाता है । इसी प्रकार क्षुद्र व्यक्ति समाज में मिलकर विराट बन जाता है । व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजीकरण में ही विकसित होता है ।
आज के युग में समाजवाद की बड़ी चर्चा है । कुछ लोग समाजवाद के नाम से भय-भीत रहते हैं । वे यह सोचते हैं, कि यदि समाजवाद आ गया, तब हमारा विनाश हो जाएगा । विनाश का अर्थ है, उनकी सम्पत्ति का उनके हाथों से निकल जाना । क्योंकि समाजवाद में सम्पत्ति
और सत्ता व्यक्ति की न रहकर समाज की हो जाती है । यह सब कुछ होने पर भी कितने आश्चर्य की बात है, कि आज संसार में सर्वत्र कहीं कम तो कहीं अधिक समाजवाद का प्रसार और प्रचार बढ़ रहा है । इस वर्तमान युग में समाजवाद, लोकतंत्रवाद और साम्यवाद का ही प्रभुत्व होता जा रहा है । समाजवाद के विषय में परस्पर विरोधी इतनी विभिन्न धारणाएँ हैं, कि समाजवाद का एक निश्चित स्वरूप बतला सकना सम्भव नहीं है । क्योंकि समाजवादी वर्ग विभिन्न दलों में विभक्त है । कौन समाजवादी है और कौन नहीं यह कहना कठिन है । मेरे विचार में समाजवाद एक सिद्धान्त है और वह एक राजनैतिक आन्दोलन के रूप में प्रकट हुआ है, किन्तु यथार्थ में वह राजनीति का ही सिद्धान्त नहीं है, बल्कि उसका अपना एक आर्थिक सिद्धान्त भी है । समाजवाद के राजनीतिक और आर्थिक सिद्धान्त इस प्रकार मिले हुए हैं, कि वे एक दूसरे से पृथक नहीं हो सकते । समाजवाद क्या है ? इसके सम्बन्ध में पाश्चात्य जगत के महान् विद्वान् जोड ने कहा है
“Socialism is like a hat that has lost its shape because every body wears it.''
"समाजवाद उस टोपी के समान है, जिसका आकार समाप्त हो गया है, क्योंकि सभी लोग उसे पहनते हैं ।" समाजवाद के सम्बन्ध में भारत के महान् चिन्तक आचार्य नरेन्द्रदेव ने कहा है-"शोषण-मुक्त समाज की
२३४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org