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व्यक्ति का समाजीकरण
परिस्थिति से बाध्य होकर जब वह अपना समाजीकरण नहीं कर पाता, तब वह समाज के और उसकी संस्कृति के उदात्त गुणों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है । इस प्रकार का व्यक्ति समाज के किसी भी क्षेत्र में अपना विशेषीकरण (Specialization) नहीं कर पाता । और जब व्यक्ति अपना विशेषीकरण नहीं कर पाता है, तब वह अपने जीवन की किसी भी योजना में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता । जीवन की सफलता और समृद्धि के लिए यह परमावश्यक है कि व्यक्ति का जीवन किसी भी क्षेत्र में विशेषीकरण होना चाहिए । विशेषीकरण एक ऐसी शक्ति है, जिससे व्यक्ति का व्यक्तित्व शानदार और चमकदार बन जाता है । विशेषीकरण तो होना चाहिए, परन्तु अहंकार नहीं होना चाहिए । व्यक्ति के व्यक्तित्व के समाजीकरण में अहंकार सबसे बड़ी बाधा है । अहंकारी व्यक्ति समाज से दूर भागता जाता है । अतः उसके जीवन का समाजीकरण नहीं होने पाता । और जब तक व्यक्ति के जीवन का समाजीकरण न होगा, तब तक उसके जीवन का सम्पूर्ण विकास सम्भव नहीं है । व्यक्ति परिवार में रहे, समाज में रहे अथवा राष्ट्र में रहे, उसे यह सोचना चाहिए, कि मेरा जीवन मेरे अपने लिए नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए है । जिस प्रकार दूध के भरे हुए कटोरे में शक्कर घुल-मिल जाती है, वह दुग्ध के कण-कण में परिव्याप्त हो जाती है और जिस प्रकार एक बिन्दु, सिन्धु में मिलकर अपनी अलग सत्ता नहीं रखता, उसी प्रकार व्यक्ति का व्यक्तित्व जब समाज में मिलकर अपनी अलग सत्ता नहीं रखता, तभी वह इस तत्व को समझ सकता है, कि समाज का लाभ मेरा अपना लाभ है, समाज का सुख मेरा अपना सुख है और समाज का विकास मेरा अपना विकास है । पाश्चात्य दर्शन के प्रकाण्ड पण्डित हर्बर्ट स्पेंसर ने कहा है
“Society exist for the benefit of its members; not the members for the benefit of the society."
स्पेंसर का कथन है, कि समाज सदस्यों के लाभ के लिए होता है, न कि सदस्य समाज के लाभ के लिए । इसका अर्थ केवल इतना ही है, कि जब व्यक्ति समाज के हाथों में अपने आप को समर्पित करता है, तब समाज भी उन्मुक्त भाव से उसे सुख के साधन प्रस्तुत कर देता है । मेरे विचार में सबसे अधिक सुखी समाज वह है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति परस्पर हार्दिक सम्मान की भावना रखता है और एक दूसरे के जीवन
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