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________________ कर्म की शक्ति और उसका स्वरूप - से । कर्म मूर्त है, क्योंकि उसके सम्बन्ध से वेदना होती है, जैसे अग्नि से । कर्ममूर्त है, क्योंकि उसके सम्बन्ध से आत्मा को सुख-दुःख भोगना पड़ता है । यदि कर्म अमूर्त होता, तो वह गगन जैसा होता । जैसे गगन से किसी का उपघात और अनुग्रह नहीं होता, वैसे कर्म से भी उपघात और अनुग्रह नहीं होना चाहिए । परन्तु कर्म से होने वाले उपघात और अनुग्रह प्रत्यक्ष देखे जाते हैं, अतः कर्म मूर्त ही है । मूर्त का अमूर्त पर प्रभाव यदि कर्म मूर्त है, जड़ है, तो फिर वह अमूर्त एवं चेतन स्वरूप आत्मा पर अपना प्रभाव कैसे डालता है ? जिस प्रकार वायु और अग्नि का अमूर्त आकाश पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार अमूर्त आत्मा पर भी मूर्त कर्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए ? इसका उत्तर इतना ही है, कि जैसे अमूर्त ज्ञान आदि गुणों पर मूर्त मदिरा आदि का प्रभाव पड़ता है, वैसे ही अमूर्त जीव पर भी मूर्त कर्म का प्रभाव पड़ सकता है । उक्त प्रश्न का एक दूसरा समाधान इस प्रकार से किया गया है, कि कर्म के सम्बन्ध से आत्मा कथंचित् मूर्त भी है । क्योंकि संसारी आत्मा अनादि काल से कर्म-संतति से सम्बद्ध है । इस अपेक्षा से आत्मा सर्वथा अमूर्त नहीं है, अपितु कर्म-सम्बन्ध होने के कारण मूलतः अमूर्त होते भी कथंचित् मूर्त है । इस दृष्टि से अमूर्त आत्मा पर मूर्त कर्म का उपघात, अनुग्रह और प्रभाव पड़ता है । अमूर्त का मूर्त से सम्बन्ध प्रश्न होता है, कि आत्मा अपने मूल स्वरूप से जब अमूर्त है और कर्म जब अपने मूल स्वरूप से मूर्त है, तब फिर अमूर्त आत्मा का मूर्त कर्म से सम्बन्ध कैसे हो जाता है ? उक्त प्रश्न के समाधान में यह कहा जाता है कि जैसे मूर्त घट का अमूर्त आकाश के साथ सम्बन्ध असम्भव नहीं है, वैसे ही अमूर्त आत्मा का मूर्त कर्म से सम्बन्ध असम्भव नहीं कहा जा सकता । इस सम्बन्ध में एक दूसरा तर्क यह है, कि जिस प्रकार अँगूठी आदि मूर्त द्रव्य का आकुञ्चन आदि अमूर्त क्रिया से सम्बन्ध होता है, इसी प्रकार अमूर्त जीव का मूर्त कर्म के साथ सम्बन्ध होने में किसी भी प्रकार विप्रतिपत्ति नहीं हो सकती । एक तीसरा तर्क यह भी हो सकता है, कि आत्मा और कर्म दोनों अगुरु-लघु होते हैं, इसलिए उनका १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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