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________________ ज्ञानमयो हि आत्मा भारतीय दर्शन में एक मात्र चार्वाक दर्शन को छोड़कर, शेष समस्त दर्शन आत्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं और आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं । यद्यपि आत्मा के स्वरूप के प्रतिपादन की पद्धति सबकी भिन्न-भिन्न हैं, पर इसमें जरा भी शंका नहीं है, कि वे सब समवेत स्वर में आत्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं । भारतीय दर्शनों में आत्मा के स्वरूप के प्रतिपादन में सबसे अधिक विवादास्पद प्रश्न यह है, कि ज्ञान आत्मा का निज गुण है अथवा आगन्तुक गुण है ? न्याय और वैशेषिक दर्शन ज्ञान को आत्मा का असाधारण गुण स्वीकार करते हैं, पर उनके यहाँ वह आत्मा का स्वाभाविक गुण न होकर आगन्तुक गुण है । उक्त दर्शनों के अनुसार जब तक आत्मा की संसारी अवस्था है, तब तक ज्ञान आत्मा में रहता है परन्तु मुक्त अवस्था में ज्ञान नष्ट हो जाता है । इसके अतिरिक्त उक्त दोनों दर्शनों की मान्यता यह भी है, कि संसारी आत्मा का ज्ञान अनित्य है, पर ईश्वर का ज्ञान नित्य है । इसके विपरीत सांख्य और वेदान्त दर्शन ज्ञान को आत्मा का निज गुण स्वीकार करते हैं । वेदान्त दर्शन में एक दृष्टि से ज्ञान को ही आत्मा कहा गया है । एक शिष्य अपने गुरु से प्रश्न पूछता है—“गुरुदेव ! किमात्मिका भगवतो व्यक्तिः ?" इसके उत्तर में गुरु कहता है-"यदात्मको भगवान् ।” शिष्य फिर पूछता है-"कियात्मको भगवान् ?" गुरु उत्तर देता है—"ज्ञानात्मको भगवान् ।" वेदान्तशास्त्र के इस प्रश्नोत्तर से यह स्पष्ट प्रतीत हो जाता है, कि वेदान्त आत्मा को ज्ञान रूप ही मानता है । वेदान्त के अनुसार ज्ञान आत्मा का निज गुण ही है । जैन-दर्शन में आत्मा के लक्षण और स्वरूप के सम्बन्ध में अत्यन्त सूक्ष्म, गम्भीर और व्यापक विचार किया गया है । आत्मा जैन-दर्शन का मूल केन्द्र-बिन्दु रहा है । जैन-दर्शन में अभिमत नव पदार्थ, सप्त तत्व, षड् द्रव्य और पञ्च अस्तिकाय में जीव एवं आत्मा ही मुख्य है । आगम युग से लेकर और आज के तर्क युग तक, जैन आचार्यों ने आत्मा का विश्लेषण प्रधान रूप से किया है । आचार्य कुन्दकुन्द के अध्यात्मग्रन्थ तो प्रधानतया आत्म-स्वरूप का ही प्रतिपादन करते हैं । तर्क-युग के जैनाचार्य भी तर्कों के विकट वन में रहते हुए भी आत्मा को भूले नहीं हैं । यदि १६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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